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         पुलिस को पीछे आते देखकर डाकू रुक गये I इंस्पेक्टर ने ध्वनि  विस्तारक यंत्र का प्रयोग कर कहा – ‘पुलिस ने कोई घेरा नहीं डाला है सरदार से कहो बात करे I’

’अरे हम है धन्ना सिंह I आवा हो इंस्पेक्टर तोहार हिस्सा तैयार बा, ल्या और ऐश करा I’- सरदार ने आगे आकर इंस्पेक्टर को एक पैकेट दिया I दोनों ने मुस्कराकर हाथ मिलाया I जाते-जाते सरदार ने एक कान्स्टेबिल के पैरो में गोली मार दी I कान्स्टेबिल गिर पड़ा I डाकू चले गए I कुछ देर बाद उस राह से दो राहगीर गुजरे I इंस्पेक्टर ने उन्हें गोली मार दी I दोनों तत्काल वही ढेर हो गए I अगले दिन समाचार पत्र में समाचार प्रकाशित हुआ-

‘कल रात पुलिस से हुयी मुठभेड़ में कुख्यात डाकू धन्ना सिंह के गिरोह के दो डाकू इंस्पेक्टर की गोली से मारे गए I बाकी डाकू भागने में कामयाब रहे I इस मुठभेड़ में एक सिपाही भी घायल हुआ उसकी हालत अब खतरे से बाहर बताई जा रही है I यह भी सुनने में आया है कि इंस्पेक्टर की बेमिसाल बहादुरी और जांबाजी के चलते उसके नाम की सिफारिश अधिकारियो द्वारा प्रोन्नति हेतु ऊपर भेजी जा रही है I’

 

 (मौलिक व् अप्रकाशित )  

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 10, 2015 at 11:18am

प्रिय शुभ्रांशु जी

ध्वनि  विस्तारक यंत्र केवल पुलिस इंस्पेक्टर के पास था  i उसने जो शब्द कहें उनका वह बचाव्  कर सकता था i वह जबरन फ़ोर्स  का प्रयोग नहीं करना चाहता था i   वगैरह ----पर आपकी आपत्ति को पूरी तरह से ख़ारिज नहीं किया जा सकता i इसके लिए आपको बधाई i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 10, 2015 at 11:12am

जीतू भैया

आपका आभार i

Comment by Shubhranshu Pandey on March 9, 2015 at 10:10pm

आदरणीय डा गोपाल जी. 

ध्वनि विस्तारक यंत्र के उपयोग से तो बातें सभी को पता चल जायेंगी. 

सादर. 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 3, 2015 at 10:24pm

सच को उजागर करती, बहुत बढ़िया लघुकथा. बधाई आदरणीय डा,गोपाल जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 3, 2015 at 6:59pm

आ० विजय सर

आपका आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 3, 2015 at 6:04pm

आ० मेहता जी

आपका आभार i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 3, 2015 at 6:03pm

आ० अनुज

आपका आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 3, 2015 at 6:02pm

आ० जान- गोरखपुरी

किसी भी रचनाकार की सभी रचनाये उत्कृष्ट नहीं होती  i कभी चलताऊ रच्ननाए भी हो जाती है i मुझे खुशी है कि मंच सजग है और मुझे सचेत करता रहता है सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 3, 2015 at 5:59pm

सोमेश कुमार

आपका आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 3, 2015 at 5:55pm

प्रिय महर्षि

स्नेह का मोल नहीं i  

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