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ग़ज़ल-आँख सपनीली सुहानी है अभी

   ग़ज़ल

 

आँख सपनीली सुहानी है अभी.

झील में रंगीन पानी है अभी.

 

पंख टूटे कैद में जीवन रहा.

चाह फिर भी आसमानी है अभी.

 

चाँद खुशबू चाहता है या उसे.

उलझनों में रातरानी है अभी.

 

आँख भर कर रह गयी तो यूँ लगा.

और थोड़ी सी कहानी है अभी.

 

डर न इतनी बाढ़ से तू ऐ नदी.

बादलों में और पानी है अभी.

 

हाँ वही आकाश मेरा था जहाँ.

बिजलियों की राजधानी है अभी.

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Comment

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Comment by राजेश शर्मा on March 20, 2011 at 9:15am
वीनस जी ,साहिल जी,उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद्.
Comment by वीनस केसरी on March 20, 2011 at 2:05am
डर न इतनी बाढ़ से तू ऐ नदी.
बादलों में और पानी है अभी.

हाँ वही आकाश मेरा था जहाँ.
बिजलियों की राजधानी है अभी.

विस्तृत फलक को समेटे आला दर्जे के शेर कहे

ये दो शेर तो खास पसंद आये

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Comment by Saahil on March 20, 2011 at 1:33am

चाँद खुशबू चाहता है या उसे.

उलझनों में रातरानी है अभी.

 

वाह वाह! बहतरीन ग़ज़ल

Comment by राजेश शर्मा on March 19, 2011 at 10:09pm
शुक्रिया योगराज जी.

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 19, 2011 at 8:09pm

//चाँद खुशबू चाहता है या उसे.

उलझनों में रातरानी है अभी.//

 

बेहतरीन ख्याल राजेश जी - वाह वाह !

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