१२२ १२२ २२१ २१२ २१२
हटाये जो काँटे तो रास्ते सुधरते गये
दुआएँ समझ कर हम झोलियों में भरते गये
कदम दर कदम जिस जिस मोड़ से गुजरते गये
बने तल्ख़ियों के घर टूटते बिखरते गये
खुदा जाने कैसे किस कांच के बने थे अजब
दरकते रहे पत्थर आईने सँवरते गये
दबाता रहा हमको झूठ आजमाता रहा
सदा सच पकड़ हम हालात से उबरते गये
ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा
तपे रोज जितना हम और भी निखरते गये
चुकाई कई कीमत राह से न लौटे कदम
चमकते गए जितना यारों को अखरते गये
खुला आसमां हमको रात दिन बुलाता रहा
सदा होंसले जीते भेद भाव मरते गये
चली तंज़ की लातादाद सब हवाएँ मगर
नई कोंपलें फूटी पात पात झरते गये
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आप को भी सखी ..बहुत बहुत शुभकामनाएँ
प्रिय सखी मीना जी ,सर्वप्रथम महिला दिवस की ढेरों बधाइयां . आपकी इस उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया ने दिल बाग़ बाग़ कर दिया .आपका बहुत बहुत बहुत शुक्रिया
ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा
तपे रोज जितना हम और भी निखरते गये
चुकाई कई कीमत राह से न लौटे कदम
चमकते गए जितना यारों को अखरते गये.............क्या बात है ..........लाजवाब गज़ल हुयी आदरणीया राजेश सखी ..बहुत बहुत बधाई
कृष्णा मिश्रा जी ,आपकी इस उत्साह्वर्धनीय प्रतिक्रिया के सम्मुख नत हूँ तहे दिल से आभार आपका .मेरा लिखना सार्थक हुआ .
प्रिय कल्पना जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार ,तथा महिला दिवस की ढेरों शुभकामनाएँ.
आ० लक्ष्मण धामी भैय्या ,आपको ग़ज़ल पसंद आई सोच कर बहुत खुश हूँ लिखना सफल हुआ हार्दिक आभार आपका
हरिप्रकाश दूबे जी,आपकी इस प्रतिक्रिया से दिल गद गद हो उठा लेखन के प्रति आश्वस्त भी हुई कि अशआर अपनी बात रखने में खरे उतर रहे हैं दिल से बहुत- बहुत आभार आपका.
आ० गिरिराज भंडारी जी,आपकी इस होंसलाफ्जाई का तहे दिल से शुक्रिया.मेरा लिखना सार्थक हुआ
मिथिलेश जी,आप जैसे रचनाकार से दाद मिलना ही किसी ग़ज़ल की सार्थकता है ग़ज़ल के अशआर आपको प्रभावित किये मेरा लिखना सफल हुआ हार्दिक आभार
पूरी गजल ही लाजवाब है,किसे कोट करे' किसे नही!!
मजा आ गया,कई बार पढ़ा!!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online