For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तपे रोज जितना हम और भी निखरते गये (महिला दिवस पर विशेष ग़ज़ल 'राज')

१२२ १२२ २२१ २१२ २१२

हटाये जो  काँटे तो रास्ते सुधरते गये 

दुआएँ समझ कर हम झोलियों में भरते गये

 

कदम दर कदम जिस जिस मोड़ से गुजरते गये  

बने तल्ख़ियों के घर टूटते बिखरते गये

 

खुदा जाने  कैसे किस कांच के बने थे अजब    

 दरकते रहे  पत्थर आईने सँवरते गये   

 

दबाता रहा हमको झूठ आजमाता रहा   

सदा सच पकड़ हम हालात से उबरते गये  

 

ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा

तपे  रोज जितना हम और भी निखरते गये

 

चुकाई कई कीमत राह  से न लौटे  कदम   

चमकते गए जितना यारों को अखरते गये

खुला आसमां हमको रात दिन बुलाता रहा

सदा होंसले जीते भेद भाव मरते गये

 

चली तंज़  की लातादाद सब हवाएँ  मगर 

नई कोंपलें फूटी पात पात झरते गये 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 764

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on March 8, 2015 at 8:48pm

आप को भी सखी ..बहुत बहुत शुभकामनाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:44pm

प्रिय सखी मीना जी ,सर्वप्रथम महिला दिवस की ढेरों बधाइयां . आपकी इस उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया ने दिल बाग़ बाग़ कर दिया .आपका बहुत बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Meena Pathak on March 8, 2015 at 8:41pm

ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा

तपे  रोज जितना हम और भी निखरते गये

 

चुकाई कई कीमत राह  से न लौटे  कदम   

चमकते गए जितना यारों को अखरते गये.............क्या बात है ..........लाजवाब गज़ल हुयी आदरणीया राजेश सखी ..बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:39pm

कृष्णा मिश्रा जी ,आपकी इस उत्साह्वर्धनीय प्रतिक्रिया के सम्मुख नत हूँ तहे दिल से आभार आपका .मेरा लिखना सार्थक हुआ .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:37pm

प्रिय कल्पना जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार ,तथा महिला दिवस की ढेरों शुभकामनाएँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:36pm

आ० लक्ष्मण धामी भैय्या ,आपको ग़ज़ल पसंद आई सोच कर बहुत खुश हूँ लिखना सफल हुआ हार्दिक आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:35pm

हरिप्रकाश दूबे जी,आपकी इस प्रतिक्रिया से दिल गद गद हो उठा लेखन के प्रति आश्वस्त भी हुई कि अशआर अपनी बात रखने में खरे उतर रहे हैं दिल से बहुत- बहुत आभार आपका.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:32pm

आ० गिरिराज भंडारी जी,आपकी इस होंसलाफ्जाई का तहे दिल से शुक्रिया.मेरा लिखना सार्थक हुआ  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:31pm

मिथिलेश जी,आप जैसे रचनाकार से दाद मिलना ही किसी ग़ज़ल  की सार्थकता है ग़ज़ल के अशआर आपको प्रभावित किये मेरा लिखना सफल हुआ हार्दिक आभार 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 8, 2015 at 6:18pm

पूरी गजल ही लाजवाब है,किसे कोट करे' किसे नही!!

मजा आ गया,कई बार पढ़ा!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service