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“ यह कुकिंग गैस के, यह राशन वाले के, यह बच्चों की स्कूल फी और अभी तो बिजली का बिल आने वाला है. न जाने इस बार....” सुनीता माह का बजट बना ही रही थी कि, तपाक से घर में झाडू-पौंछा कर रही लक्ष्मीबाई पूछ बैठी..

“ बीबी जी.. आप हर माह बिजली के बिल को लेकर क्यूँ परेशान हो जाती हो..?”

“अरे!! बिजली का बिल ही तो झटके मार देता है, पूरे महीने के बजट पर. क्यूँ तुम लोग भी तो खूब टी.व्ही. पंखे चलाते हो, तुम्हे फर्क नहीं पड़ता क्या..?”

“ अरे!! बीबी जी.. टी.व्ही. पंखा ही क्या. हम तो खाना भी हीटर पर बनाते है. और तो और जाड़ों के समय उसे रूम हीटर बना लेते है. बिल की काहे की चिंता. हमें सरकार ने एक बत्ती कनेक्शन फ्री जो दे रखा है”

 

  जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 13, 2015 at 11:15am

आदरणीया राजेश दीदी. आपकी उत्साहवर्धक स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 13, 2015 at 11:14am

आदरणीय डा.विजय जी. आपकी बधाई सिर आँखों पर. आप सही कह रहें है आखिर रही यह वोट की राजनीति. मदद अलग बात हो जाती है लेकिन मदद को जमकर मजा लिया जाय तो.... देश का बजट भी बिगड़ जाता है और पूरा भार, सीधी राह चलने वाले बैल पर..

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 13, 2015 at 11:06am

आपका बहुत-बहुत आभार, आदरणीय विनय जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 13, 2015 at 11:04am

आदरणीय श्याम मठपाल जी, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका हार्दिक आभार.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 13, 2015 at 11:02am

आदरणीय महर्षि जी, आपके प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 13, 2015 at 11:00am

आदरणीय सोमेश भाई जी. उत्साहवर्धन हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ. आप सही कह रहें ,लेकिन निजीकरण से सेवायें दुरुस्त हो जायेंगी लेकिन शुल्क का कुछ नही कह सकते.

सादर!

Comment by Nidhi Agrawal on March 13, 2015 at 9:39am

अच्छा कटाक्ष है ! सही में हम मध्यमवर्गीय जहाँ इन बातों से परेशान हैं .. बाकी दोनों वर्ग मजे में हैं .. सरकार या तो निम्नवर्गीय लोगों के लिए करती है या उच्च वर्गियों के लिये 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 7:45am

सही कटाक्ष किया है आदरणीय जितेन्द्र जी बहुत बढ़िया बहुत बहुत बधाई इस लघुकथा के लिये

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 13, 2015 at 5:30am

सत्य है ...लूट सके तो लूट ! कोई बिजली तो कोई चारा ....बधाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 12, 2015 at 9:55pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी, कई अवैध झोपड़ पट्टियों और देहातों में कटिया / टोका फँसा कर बिजली चोरी की जाती है, आप की लघुकथा अँधेरे पक्ष पर रौशनी डालती है, बधाई इस लघुकथा पर..

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