“ यह कुकिंग गैस के, यह राशन वाले के, यह बच्चों की स्कूल फी और अभी तो बिजली का बिल आने वाला है. न जाने इस बार....” सुनीता माह का बजट बना ही रही थी कि, तपाक से घर में झाडू-पौंछा कर रही लक्ष्मीबाई पूछ बैठी..
“ बीबी जी.. आप हर माह बिजली के बिल को लेकर क्यूँ परेशान हो जाती हो..?”
“अरे!! बिजली का बिल ही तो झटके मार देता है, पूरे महीने के बजट पर. क्यूँ तुम लोग भी तो खूब टी.व्ही. पंखे चलाते हो, तुम्हे फर्क नहीं पड़ता क्या..?”
“ अरे!! बीबी जी.. टी.व्ही. पंखा ही क्या. हम तो खाना भी हीटर पर बनाते है. और तो और जाड़ों के समय उसे रूम हीटर बना लेते है. बिल की काहे की चिंता. हमें सरकार ने एक बत्ती कनेक्शन फ्री जो दे रखा है”
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया राजेश दीदी. आपकी उत्साहवर्धक स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ
सादर!
आदरणीय डा.विजय जी. आपकी बधाई सिर आँखों पर. आप सही कह रहें है आखिर रही यह वोट की राजनीति. मदद अलग बात हो जाती है लेकिन मदद को जमकर मजा लिया जाय तो.... देश का बजट भी बिगड़ जाता है और पूरा भार, सीधी राह चलने वाले बैल पर..
सादर!
आपका बहुत-बहुत आभार, आदरणीय विनय जी
सादर!
आदरणीय श्याम मठपाल जी, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति हेतु आपका हार्दिक आभार.
सादर!
आदरणीय महर्षि जी, आपके प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार.
सादर!
आदरणीय सोमेश भाई जी. उत्साहवर्धन हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ. आप सही कह रहें ,लेकिन निजीकरण से सेवायें दुरुस्त हो जायेंगी लेकिन शुल्क का कुछ नही कह सकते.
सादर!
अच्छा कटाक्ष है ! सही में हम मध्यमवर्गीय जहाँ इन बातों से परेशान हैं .. बाकी दोनों वर्ग मजे में हैं .. सरकार या तो निम्नवर्गीय लोगों के लिए करती है या उच्च वर्गियों के लिये
सही कटाक्ष किया है आदरणीय जितेन्द्र जी बहुत बढ़िया बहुत बहुत बधाई इस लघुकथा के लिये
सत्य है ...लूट सके तो लूट ! कोई बिजली तो कोई चारा ....बधाई
आदरणीय जीतेन्द्र जी, कई अवैध झोपड़ पट्टियों और देहातों में कटिया / टोका फँसा कर बिजली चोरी की जाती है, आप की लघुकथा अँधेरे पक्ष पर रौशनी डालती है, बधाई इस लघुकथा पर..
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