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पूरी कॉलोनी वालों की बेफ़िक्र नींद का राज़ था - रानी,  वो पालतू न होते हुए भी कॉलोनी में रात के समय भौंक भौंक कर,  किसी भी अपरिचित को नहीं घुसने देती थी.  बदले में कॉलोनी के लोग भी रानी को खाने के लिये कुछ न कुछ दे देते थे. समय के साथ रानी ने गर्भधारण भी किया, लेकिन उन दिनों में उसकी थकान के बाद भी उसे खाने को कम ही मिलता.  जब उसे प्रसव पीड़ा आरम्भ हुई, तब भी वो अकेली थी. उसने पांच बच्चों को जन्म दिया,  प्रसव के पश्चात्, रानी को बड़ी तेज़ भूख लगी, लेकिन आज उसके पास खाने को  किसी ने कुछ रखा ही नहीं था. इंसानों की कॉलोनी में जब सुबह हुई तो कॉलोनी के कई व्यक्ति रानी के पास आकर उसके चारों सुंदर बच्चों को सहलाते हुए कह रहे थे.. “ अब हमारी कॉलोनी चारों तरफ से सुरक्षित रहेगी..”

 

  

  जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 12, 2015 at 6:50pm

आदरणीय शुभ्रांशु जी. बहुत समय पश्चात आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया पाकर, ख़ुशी मिली. आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

आदरणीय भुवन निस्तेज जी, आपकी उपस्थिति हेतु आपका आभारी हूँ

सादर!

Comment by Shubhranshu Pandey on March 9, 2015 at 10:19pm

आदरणीय जितेंद्र जी, भूख को परिभाषित करने के लिये  कुत्ते के स्वभाव से अलग दिखाना एक नया प्रयोग है. इंसानो की बस्ती में कुत्ते भी इंसान होने लगे हैं.

सादर.

Comment by भुवन निस्तेज on March 7, 2015 at 2:39pm
वाह जितेंद्र भाई क्या खूब कहा....
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 4, 2015 at 10:25am

आदरणीय गिरिराज जी. आपकी बधाई शिरोधार्य, आपकी भावनाओं को नमन. अगर सक्षमता हो तो जानवरों के प्रति हमारा यही फर्ज होना चाहिए.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 4, 2015 at 10:17am

आदरणीय विनय जी. आपकी सराहना व् प्रोत्साहन पाकर, बड़ा मनोबल मिलता है. आपका आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 4, 2015 at 10:16am

आदरणीया राजेश दीदी. लघुकथा की सराहना व् प्रोत्साहन के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ. इस घटना के पीछे सिर्फ जानलेवा भूख ही एक कारण है. और भूख में जब एक इंसान तक अंधा हो सकता है तो वो तो मूक जानवर है.

सादर!


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Comment by गिरिराज भंडारी on March 4, 2015 at 10:04am

आदरनीय जितेन्द्र भाई , सच है , यही होता है आम तौर पर , इसी लिये खासतौर पर ऐसे समय में, मैं रोटियों की संख्या बढा देता हूँ  और , यही होना भी चाहिये अगर हम सक्षम हैं तो । बधाई भाई जी , रचना के लिये ॥ 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 4, 2015 at 9:52am

आदरणीय कृष्णा मिश्रा जी. आप एक रचनाकार है आपकी सम्वेदनशीलता को नमन. किन्तु सत्य तो सत्य ही है. इंसान और जानवर में कहीं बहुत सी तुलनाए है जिन्हें पृकृति का वरदान ही कहेंगे. आपकी सराहना पाकर बड़ा मनोबल मिला

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 4, 2015 at 9:45am

आदरणीय सोमेश भाई जी. लघुकथा पर आपका गहरा दृष्टीकोण, आपकी पाठकधर्मिता है. आपकी प्रतिक्रिया व् प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ.

सादर!

Comment by विनय कुमार on March 3, 2015 at 6:22pm

सुन्दर और असरदार लघुकथा हुई है , ये अलग बात है कि मैं भी कुत्ते द्वारा अपने बच्चे को खाने से सहमत नहीं हूँ ..

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