मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो
मेरे आँखों की पानी तुम हो
मेरे ख्वाबों की रानी तुम हो
मेरे दर्द की कहानी तुम हो
हाँ तुम हो ,
मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो |
तुझसा कोई न आये
गर आये तो फिर न जाये
तेरे बिन जिया न जाये
ये दिल पाये जिसे पाये ,तुम हो
हाँ तुम हो
मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो |
हर जगह से था मैं हारा
था मैं वक़्त का मारा
मुझे मिला तेरा किनारा
बन गया जो मेरा सहारा ,तुम हो
हाँ तुम हो
मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो |
मेरे सुख-दुःख में भागीदारी
मोहब्बत में मिली सवारी
फीकी है ये दुनिया सारी
घर को स्वर्ग बना दे नारी ,तुम हो
हाँ तुम हो
मेरी ज़िन्दगी तुम हो ,मेरी बंदगी तुम हो ||
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"मौलिक वा अप्रकाशित "
Comment
मेरा भ्रम दूर करने हेतु आपका हार्दिक आभार आ.डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी |
प्रिय महर्षि
ध्यान दो मैंने - आँखों का पानी तुम हो -----नहीं कहा I जब आँख का पानी तुम हो वही अर्थ दे रहा है तब हम आँखों का पानी क्यों कहे I
और आँखों की पानी तो कतई सही नहीं है I आँख अपने सारे पर्यायवाचियो में भी पुल्लिंग है I स्नेह I
आ. गिरिराज भंडारी जी व आ. डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ,,,,,मेरे हिसाब से ये सही है ,आ.मेरा भ्रम दूर करें |
आदरणीय महर्षि भाई , सुन्दर भाव पूर्ण रचना हुई है , बधाइयाँ ॥ जो कहना चाहता था , आ. गोपाल भाई कह चुके हैं ॥
महर्षिजी
मेरी आँख का पानी तुम हो ------------------ सही होगा .
आ.बड़े भाई krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी ,,,इस मंच के साथ -साथ आप का सहियोग मेरी अनमोल उपलब्धि आ.Shyam Mathpal जी , Hari Prakash Dubey जी ,Dr. Vijai Shanker जी , Shyam Narain Verma जी ,रचना पसंद आने और उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु कोटि कोटि प्रणाम |
भाई महर्षि! बहुत बहुत बधाई!इस प्रस्तुति पर!!बहुत ख़ूब!ज्यादा दिन नही हुए! मुझे अपने शुरूआती दिनों की याद आ गई,कवि-कविता गीत-गज़ल सबका मूल यही स्वत: निकलते हृदय के उद्गार ही है,बस इसी को पकड़े रहिये!!गाते रहिये-गुनगुनाते रहिये! बाकी जिन्दगी खुद ही सिखा देती है!!सीखना जीवनपर्यन्त चलता रहता है!आप और मैं भी बहुत भाग्यशाली है जो हमें इतनी कम उम्र में इतना खुबसूरत मंच मिला है!!
भाई महर्षि त्रिपाठी जी, सुन्दर प्रयास है ,सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई आपको !
Aadarniya Maharish ji,
Arpan wa samarpan liye huwe bhawanapura rachna ke lie deron badhai.
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