2222 1222 1222
लोगों को लूटने का फ़लसफ़ा होता ||
तो अपने नाम पर बाबा लगा होता ||
तूं तूं - मैं मैं न होती इस कदर हम में ,
तेरा मेरा अगर इक रास्ता होता ||
माना होता खुदा को एक हमने तो ,
फिर घर न कोई किसी का जला होता ||
उनको आया नज़र फर्के- लिबासां ही ,
काश !ये इक रंग का खूं भी दिखा होता ||
फिर मैं भी मानता परवाह है उसको ,
ग़र आंसू पोंछ बांहो में कसा होता ||
समझौता कर लिया हालात से उसने ,
हो जाती जीत ग़र ज़िद पे अड़ा होता||
.
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नज़ील भाई , अच्छी गज़ल हुई है , दिली मुबारबाद !
2222 1222 1222 , बस ये बह्र मान्य बह्र है या नहीं थोड़ी शंका है , अब तक मैने -- 1222 1222 1222 , इस बहर में गज़लें देखी हैं । सोच लीजियेगा ।
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