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वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल...

२२१२ २२१२ २२१२

खामोश से रहने लगे हैं आजकल ॥
हम रात भर जगने लगे हैं आजकल ॥

इन महफ़िलों को क्या हुआ किसको पता ,
सब  चेहरे ढलने लगे है आजकल ॥

सदियों से लूटा है खुदा के नाम पे ,
तो कब नया ठगने लगे है आज कल ॥

निभते नहीं हैं जो सियासत में कभी ,
वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल ॥

कैसे कहें , कितना चाहें हैं उसे ,
बस सोच के डरने लगे हैं आज कल ॥

मालूम होता तो बता पाते तुझे ,
वो दूर क्यों हटने लगे हैं आज कल ॥

अब क्या कहें तुमको कि तेरे ही सबब ,
हम पे सवाल उठने लगे है आज कल ॥

अप्रकाशित व् मौलिक

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 24, 2015 at 1:38pm

इस सुंदर रचना पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 24, 2015 at 12:00am

सुन्दर गजल पर बधाईयां!

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on March 23, 2015 at 12:47pm

 

अब क्या कहें तुमको कि तेरे ही सबब ,
हम पे सवाल उठने लगे है आज कल ॥

pyare bhaav mitra - badhaee

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 23, 2015 at 11:46am
सुन्दर , बधाई, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 23, 2015 at 8:24am

अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई आदरणीय  नाजिल जी 

बाकी आदरणीय बागी सर ने इशारा कर दिया है.

Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 12:18am

आ. नजील जी, सुन्दर प्रयास ,बधाई आपको ! 

मालूम होता तो बता पाते तुझे ,
वो दूर क्यों हटने लगे हैं आज कल ॥...सुन्दर 

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 22, 2015 at 9:23pm
अच्छी ग़ज़ल है भाई जी बधाई ....................

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 22, 2015 at 8:10pm

//हाँ चेहरे थकने लगे है आजकल//

आ. नाजिल जी इस मिसरे की तकती नहीं समझ सका,  यदि अरुज के अनुसार कोई छूट हो तो अवगत कराना चाहेंगे. 

Comment by somesh kumar on March 22, 2015 at 7:33pm

अच्छी कोशिश

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 22, 2015 at 6:57pm

अच्छी गजल कही आपने . सादर .  

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