२२१२ २२१२ २२१२
खामोश से रहने लगे हैं आजकल ॥
हम रात भर जगने लगे हैं आजकल ॥
इन महफ़िलों को क्या हुआ किसको पता ,
सब चेहरे ढलने लगे है आजकल ॥
सदियों से लूटा है खुदा के नाम पे ,
तो कब नया ठगने लगे है आज कल ॥
निभते नहीं हैं जो सियासत में कभी ,
वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल ॥
कैसे कहें , कितना चाहें हैं उसे ,
बस सोच के डरने लगे हैं आज कल ॥
मालूम होता तो बता पाते तुझे ,
वो दूर क्यों हटने लगे हैं आज कल ॥
अब क्या कहें तुमको कि तेरे ही सबब ,
हम पे सवाल उठने लगे है आज कल ॥
अप्रकाशित व् मौलिक
Comment
इस सुंदर रचना पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
सुन्दर गजल पर बधाईयां!
अब क्या कहें तुमको कि तेरे ही सबब ,
हम पे सवाल उठने लगे है आज कल ॥
pyare bhaav mitra - badhaee
अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई आदरणीय नाजिल जी
बाकी आदरणीय बागी सर ने इशारा कर दिया है.
आ. नजील जी, सुन्दर प्रयास ,बधाई आपको !
मालूम होता तो बता पाते तुझे ,
वो दूर क्यों हटने लगे हैं आज कल ॥...सुन्दर
//यहाँ चेहरे थकने लगे है आजकल//
आ. नाजिल जी इस मिसरे की तकती नहीं समझ सका, यदि अरुज के अनुसार कोई छूट हो तो अवगत कराना चाहेंगे.
अच्छी कोशिश
अच्छी गजल कही आपने . सादर .
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online