For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माना होता खुदा को एक हमने

2222 1222 1222

लोगों को लूटने का फ़लसफ़ा होता ||
तो अपने नाम पर बाबा लगा होता ||

तूं तूं - मैं मैं न होती इस कदर हम में ,

तेरा मेरा अगर इक रास्ता होता ||

माना होता खुदा को एक हमने तो ,
फिर घर न कोई किसी का जला होता ||

उनको आया नज़र फर्के- लिबासां ही ,
काश !ये इक रंग का खूं भी दिखा होता ||

फिर मैं भी मानता परवाह है उसको ,
ग़र आंसू पोंछ बांहो में कसा होता ||

समझौता कर लिया हालात से उसने ,
हो जाती जीत ग़र ज़िद पे अड़ा होता||

.

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 609

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nazeel on March 18, 2015 at 8:41am
आदरणीय सौरभ पांड़े जी हार्दिक आभार. गुणीजनों की सलाहानुसार मैं इसको ठीक करने की कोशिश कर रहा हूं.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 5:59am

आप ग़ज़ल पर मिले सुझाव पर ध्यान दें.

शुभेच्छाएँ

Comment by Nazeel on March 17, 2015 at 7:51pm

आदरणीय  निर्मल नदीम जी बहुत बहुत धन्यवाद गलती में ध्यान दिलवाने के लिए।  ये अहसास  हो  गया  है मुझको इसको सुधारने  कोशिश रहा  हूँ 

Comment by Nirmal Nadeem on March 17, 2015 at 3:53pm

Muafi chahta hu janab. ghazal jo bhi kahi hai aapne wo khayaal to bahut khoobsoorat hai lekin ye bahr maine kahi nhi dekhi. shukriya.

Comment by Nazeel on March 16, 2015 at 7:57pm

बहुत-बहुत धन्यवाद  आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी और आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी.. जो कुछ तकनीकी त्रुटि है  वो  पता चल गई है  उसको सुधारने की कोशिश कर  रहा  हूँ 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 7:45pm

 आ. नजील भाई सुन्दर प्रस्तुति है , तकनीकी पक्ष ज्यादा मैं भी नहीं जानता , विद्वजनो ने कह ही दिया है , हार्दिक बधाई आपको ! 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:41pm

भाई नजील गजल तो आपने खूब कही पर  ---- भंडारी जीने कुछ कहा .  सादर .

Comment by Nazeel on March 16, 2015 at 5:21pm

हौंसला आफजाई के लिए तहे -दिल से शुक्रिया  आदरणीय भाई श्याम मठपाल जी … 

Comment by Shyam Mathpal on March 16, 2015 at 3:14pm

Aadarniya Nazeel Ji,

लोगों को लूटने का फ़लसफ़ा होता ||
तो अपने नाम पर बाबा लगा होता ||  ------ Hakikat bayan ki hai aapne... Bahut sundar. Dhero badhai.

Baba Neta Saudagar aur thagon ke sardar,

Sab janta Ko lutate Karte Bhavnawon Ka vyapar.

Comment by Nazeel on March 16, 2015 at 1:54pm

हौंसला बढ़ाने हेतु तहे-दिल से शुक्रिया आदरणीय  भाई गिरिराज भंडारी जी.. आप सही कह रहें हैं मैंने  ध्यान दिया जब मुकम्मल हो गई थी फिर मैंने छेड़छाड़ नहीं की आगे से ध्यान रखा करुंगा।  एक बार फिर से शुक्रिया  । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अंतिम दो पदों में तुकांंत सुधार के साथ  _____ निवृत सेवा से हुए, अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन…"
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी _____ निवृत सेवा से हुए अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन से न बैठने दें पोतियाँ माँगतीं…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी * दादा जी  के संग  तो उमंग  और   खुशियाँ  हैं, किस्से…"
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   देवों की है कर्म भूमि, भारत है धर्म भूमि, शिक्षा अपनी…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Dec 16

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service