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ग़ज़ल ------------------गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२२ २१२२  २१२

दर ब दर भटके बिचारी ज़िन्दगी
मौत से भी देखो हारी ज़िन्दगी

आसुओं में रही यूँ वो तर ब तर
इसलिए तो लगती खरी ज़िन्दगी

मांगती ही रहती है साँसे सदा
हर बशर की है भिखारी ज़िन्दगी

ख़त्म गर्भों में हुई जो धडकनें
अब कहाँ है वो कुंवारी ज़िन्दगी

बोझ ढोता  ही रहा परिवार का
एक बच्चे ने भली  सँवारी ज़िन्दगी

गुमनाम पिथौरागढ़ी

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 16, 2015 at 9:54pm

आसुओं में रही यूँ वो तर ब तर
इसलिए तो लगती खारी ज़िन्दगी    वाह! वाह! वाह!

गुमनाम भाई इस शेर ने दिल जीत लिया!!ढेरों बधाईयां!!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 16, 2015 at 9:07pm

आसुओं में रही यूँ वो तर ब तर 
इसलिए तो लगती खरी ज़िन्दगी 

एक बच्चे ने भली  सँवारी ज़िन्दगी 

आदरणीय गुमनाम जी, जरा उपरोक्त मिसरों की तकती करना चाहेंगे.

खरी जिन्दगी ...काफिया के हिसाब से खारी ही होनी चाहिए शायद टंकण त्रुटि है, सादर.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 8:36pm

बढ़िया गजल  . नजील जी ने जो कहा वही मेरा भी ख्याल है .

Comment by Nazeel on March 16, 2015 at 8:22pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति भाई गुमनाम जी दिली दाद क़ुबूल करें
///आसुओं में रही यूँ वो तर ब तर
इसलिए तो लगती खरी ज़िन्दगी //// इस शेयर में शायद टंकण त्रुटि है आप खारी कहना चाह रहे है शायद ..देख लीजियेगा

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