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ग़ज़ल - घी डालना होगा................ (मिथिलेश वामनकर)

1222---1222---1222---1222

 

हिदायत से ग़रीबों का जहाँ आना मना होगा

यक़ीनन ही सियासत का वहाँ तम्बू तना होगा।

 

कमीशन बैठकर अपनी हज़ारों राय दे, लेकिन

बसेसर का जला क्यूँ घर, कभी तो  देखना होगा।

 

हमारे नाम की रोटी बटी किसको पता साहिब

कि अगली रोटियां कब तक मिलेगी पूछना होगा।

 

किसी ने दूर से पत्थर उछाला सूर्य पर, लेकिन

सितारों ने खबर क्यों की ये मसला जांचना होगा।

 

लड़ाई कौम की खातिर, करो लेकिन ज़ुरूरी है

अकीदत में मुहब्बत का जरा घी डालना होगा।

 

नई ये मीडिया-सोशल, बरत लो सब मज़े लेकर

मगर बच्चा ये बिगड़ा है, संभलकर पालना होगा।

 

कभी हिम्मत नहीं करते कि अपनी आँख ही मल लें

उन्ही बेजार हाथों को घड़ी भर थामना होगा।

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 19, 2015 at 8:45pm

आदरणीया निधि जी ग़ज़ल की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

आदरणीय निर्मल भाई जी के सुझाव में मतले को शब्दशः स्वीकार कर लिया यानी मुफ़्लिस के स्थान पर ग़रीबों लेकर भर्ती का शब्द हटा दिया. और लिंग दोष को इस प्रकार ठीक किया है- मगर बच्चा ये बिगड़ा है, संभलकर पालना होगा। 

सादर 

Comment by Nidhi Agrawal on March 19, 2015 at 6:52pm

आदरणीय मिथिलेश जी बहुत उम्दा ख़याल पिरोये हैं आपने ग़ज़ल में ... एक एक युग्म बेमिसाल है 

बधाई एवं दाद कुबूल कीजिये 

आदरणीय निर्मल जी की बात से कुछ कुछ सहमत हूँ ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 19, 2015 at 11:36am
आदरणीय निर्मल भाई जी मतला में का शब्द भर्ती का लग रहा है, सही कहा। मतले में आपका सुझाव स्वीकार है।
दूसरे मिसरें को यूं कह सकते है जिससे लिंग दोष दूर हो जाए-
मगर बच्चा ये बिगड़ा है, संभलकर पालना होगा।
ग़ज़ल की सराहना, सकारात्मक प्रतिक्रिया और अमूल्य सलाह के लिए हार्दिक आभार।
Comment by Nirmal Nadeem on March 19, 2015 at 11:13am

बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है भाई वाह वाह बहुत बहुत खूबसूरत

मुबारक हो

दो मिसरों पर आपका ध्यान चाहूँगा।

१. हिदायत से जहाँ मुफ़लिस के आने का मना होगा।

इसको देखा जाय तो आपकी बात लिए आपने मिसरे को खींचा है। इस मिसरे में का शब्द भर्ती का हो गया है। यूँ भी आपकी बात पूरी हो रही है
हिदायत से जहां मुफ़लिस का आना मना होगा।

लेकिन ये बहर में नही हुआ इसलिए ये ग़ज़ल में नहीं लिया जा सकता , तो इसमें कुछ परिवर्तन इस तरह किया सकता है -

हिदायत से ग़रीबों का जहाँ आना मना होगा।

मेरे हिसाब से अब ये मिसरा ठीक हुआ।

२. मगर औलाद ये बिगड़ी, संभलकर पालना होगा।

इस मिसरे में औलाद और पालना होगा , मेरे हिसाब से लिंग बदल रहा है। औलाद पाली जाती है , बच्चा पाला जाता है।

इसलिए इसको भी थोड़ा परिवर्तित करके ठीक कर लें। शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 19, 2015 at 9:12am
संशोधन के बाद ग़ज़ल सादर प्रस्तुत।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 19, 2015 at 5:50am

आदरणीया वंदना जी ग़ज़ल पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 19, 2015 at 5:49am

आदरणीय सौरभ सर, प्रयास पर गरिमामय उपस्थिति के लिए हार्दिक आभार. नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 19, 2015 at 5:48am

आदरणीया राजेश दीदी, ग़ज़ल की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. ग़ज़ल का मतला सुधार चाहता है, आपके मार्गदर्शनानुसार सुधार करता हूँ . मार्गदर्शन के लिए हृदय से आभारी हूँ. सादर नमन 

Comment by vandana on March 19, 2015 at 5:00am

 

हमारे नाम की रोटी बटी किसको पता साहिब

कि अगली रोटियां कब तक मिलेगी पूछना होगा।

 

किसी ने दूर से पत्थर उछाला सूर्य पर, लेकिन

सितारों ने खबर क्यों की ये मसला जांचना होगा।

बहुत बढ़िया आदरणीय मिथिलेश जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 9:59pm

सुधीजनों के कहे का सम्मान करते हुए आपके प्रयास पर हृदयतल से शुभकामनाएँ ..

कृपया ध्यान दे...

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