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ग़लतफ़हमी कि पोखर साफ़ पानी का बना होगा |
कमल खिलता हुआ होगा तो कीचड़ से सना होगा। |
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सुख़नवर ने सुखन की बाढ़ ला दी क्या कहे साहिब |
सुखन में है सुखन कितनी, यही बस सोचना होगा। |
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उजाले कुछ सदाकत के संभालों आखिरी दम को |
न कोई साथ में होगा, अँधेरा भी घना होगा। |
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रवां रफ़्तार में खोया तू अपनी कामयाबी की |
न तेरा छूट जाए घर, इसे अब रोकना होगा। |
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दिया है कब निज़ामत ने किसी को मांगने से कुछ |
अगर हक़ चाहिए तुमको जबर से छीनना होगा। |
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अमूमन फेसबुक पर मैं बहुत अपडेट रहता हूँ |
पड़ोसी कौन है मत पूछ शायद सोचना होगा। |
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हमेशा जी-हुजूरी से यहाँ सब काम होते है |
हुनर अब जेब में रख लो कि नाहक ही फ़ना होगा। |
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Comment
कमाल है वीनस भाई
आपकी समीक्षा ने तो मेरे कान ही खडे कर दिया . वैसे आपके गजल संबंधी लेखो को पढकर मैं भी हाथ पांव मार रहा हूँ . अल्लाह खैर करे . सादर .
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान .. . फिर हम तो जड़मति से बहुत बेहर हैं .. :-))
इस ग़ज़ल पर अच्छी चर्चा हुई है. मंच पर प्रस्तुत कई ग़ज़लों पर कई बातें कही जा सकने लायक हैं लेकिन वो ग़ज़लें शुरुआती दौर की हैं. दरसल ग़ज़ल कहन और कहन की सोच, कहन की फ़िक्र पर निर्भर करती है ..
:-))
आदरणीय वीनस भाई जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हूँ. इस ग़ज़ल ने बहुत डांट पिलवाई है. पहले निर्मल भाई जी ने वाट्स एप पर, फिर ओबीओ पर प्रतिक्रिया देकर लताड़ लगाई, फिर गिरिराज सर ने फोन करके लम्बी क्लास ली. उसके बाद थोड़ा सावधान हुआ था. आज आपने जो लताड़ लगाईं है और ग़ज़ल का तिया-पाचा किया है उसने पूरी आँखें खोल दी. ऊपर से पोस्ट में संशोधन करना भूल गया तो एक ही गलती पर डबल डांट पड़ गई. ग़ज़ल में आपने जो त्रुटियाँ बताई है वो बहुत गंभीर है, उन्हें सुधारता हूँ. साथ ही विश्वास दिलाता हूँ कि पोस्ट करने में जल्दबाजी न करते हुए, आगे से पूरी तरह देख-समझ लेने के बाद ही ग़ज़ल पोस्ट करूँगा. इस नए अभ्यासी को आपने इतना समय दिया और इतने अपनत्व से समझाया, उसके लिए हृदय से आभारी हूँ. अभिभूत हूँ.
कान पकड़ के कह रहा हूँ ... ऐसी गलती दुबारा नहीं होगी. सादर
गलतफहमी कि मेरी ये ग़ज़ल अच्छी बनी होगी
ग़लतफ़हमी कि पोखर साफ़ पानी का बना होगा |
कमल खिलता हुआ होगा तो कीचड़ से सना होगा। ........ किसी यथोचित अर्थ तक नहीं पहुंच पा रहा हूँ |
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सुख़नवर ने सुखन की बाढ़ ला दी क्या कहे साहिब |
सुखन में है सुखन कितना, यही बस सोचना होगा। ......... यही बस सोचना होगा या इसे भी सोचना होगा |
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उजाले कुछ सदाकत के संभालों आखिरी दम को न कोई साथ में होगा, अँधेरा भी घना होगा।
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न कोई साथ में होगा, अँधेरा भी घना होगा। ........... में शब्द की क्या ज़रुरत है ? सदाकत के उजाले को संभालो सफर-ए-आखिर में न कोई साथ होगा और अँधेरा भी घना होगा। |
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न तेरा छूट जाए घर, इसे अब रोकना होगा।
न तेरा छूट जाए घर, इसे अब रोकना होगा।..... भाई जी इसे अब रोकना होगा। से क्या मुराद है ???
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मगर अपनों को पाना है तो आखें खोलना होगा ... (हालांकि अभी इस शेर में और गुंजाईश है) |
दिया है कब निज़ामत ने किसी को मांगने से कुछ ............ निज़ामत का इस्तेमाल सही है या निज़ाम का इस्तेमाल करना चाहिए ? अगर निजामत ही सही हो तब भी शेर को इस तरह घुमा फिर कर कहन क्यों ज़रुरी है जबकि सादगी से बयान करने की पूरी गुंजाईश है !!! जबर से ज़बान के हवाले से कैसे सही ठहरेगा ..
अमूमन फेसबुक पर मैं बहुत अपडेट रहता हूँ.... |
पड़ोसी कौन है मत पूछ शायद सोचना होगा। |
अमूमन और बहुत शब्द एक दूसरे के विरोधाभासी हैं |
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हुनर अब जेब में रख लो कि नाहक ही फ़ना होगा। |
माज़रत के साथ कहना पड़ रहा है कि आपकी यह ग़ज़ल बहुत कच्ची है ... आपने इससे लाख गुना साफ़ सुथरी ग़ज़लें कही हैं
आगे भी आपसे उसी मेयार की ग़ज़लें चाहिए
अमूमन फेसबुक पर मैं बहुत अपडेट रहता हूँ |
पड़ोसी कौन है मत पूछ शायद सोचना होगा। यह तो सच कहा आपने अब तो पड़ोसियों के हाल चाल भी फेसबुक पर ही पता चलते हैं लाजवाब ग़ज़ल आदरणीय सभी अशआर एक से बढ़कर एक काबिले तारीफ |
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