For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रधान मंत्री का कारवाँ चला जा रहा था कि बीच में एक जंगल से गुजरते हुए साइड विंडो से अचानक दिखाई दिया, कुछ स्त्रियाँ सिर पर लकड़ियों की गठरिया लिए जा रही थीं  उनमे एक वृद्धा जो पीछे रह गई थी अभी गठरिया बाँध ही रही थी कि प्रधान मंत्री जी ने गाड़ी रुकवाई और उस वृद्धा से बातचीत करने पंहुच गए.|

  “किस गाँव की हो माई? इस उम्र में ये काम!.. तुम्हारे बच्चे’?

“क्यूँ नहीं साब जी,  एक बिटवा है जो  फ़ौज में है, पोता है, बहू है” वृद्धा बोली.  

“बेटा पैसा तो भेजता होगा”? “हाँ जी, जब से शादी हुई उसकी किताबो में मेरी जगह बहु का नाम लिख गया तो पैसा सब बहू के पास आवे है फिर उसे भी तो अपने बच्चों  के लिये पैसा चाहिए” |

”माई तुम्हारा गाँव कितनी दूर है यहाँ से”?  “तीन किलोमीटर कहे हैं लोग”|

“तुम पैदल ही”?  “हाँ उसमे कौनु   बड़ी बात है”|

  “कभी कोई मंत्री आया उस गाँव में”? “ना जी, सारा रास्ता उबड खाबड़ है और सुना है  मंत्री लोग बहुत नाजुक होवे हैं गाड़ी में भी आवेंगे तो कमर में लोच आ जावेगी इस लिए कोई नी आता जी”|

 “मुझे पहचानती हो?; टीवी है ?मतलब बिजली विजली है गाँव में”?

“जी काहे मजाक करते हो?"

"बेटे के पास गई थी  एक बार बस तब देखा था कैसा होवे टीवी”|

“चल माई गठरी मैं उठवा दूँ”? “ना बेटा रहन दे अपना भार  खुद ही उठाना पड़े है जिन्दगी में, वैसे भी प्रधान मंत्री के कंधो पे तो  देश का ही भतेरा भार रहवे है बेट्टा तू उसे संभाल”. इतना कहकर वृद्धा ने झटके  से गठरी उठाई और सिर पर रख कर तेज-तेज क़दमों से आगे निकल गई| 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)     

Views: 1132

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nidhi Agrawal on March 20, 2015 at 6:37pm

आदरणीया राजेश जी.. लघुकथा बहुत सुन्दर बन पड़ी है .. माई के कटाक्ष बहुत तीक्ष्ण हैं और स्वाभिमान भी .. कहीं भी शिकायत नहीं है ..उसे फर्क नहीं पड़ता की क्या चल रहा है .. अपनी ज़िन्दगी में जो है उसे नियति मान कर उसमे खुश रहने की कला का बहुत खूबसूरती से सन्देश दिया गया 

Comment by maharshi tripathi on March 20, 2015 at 6:16pm

आ,राजेश कुमारी जी ..आ. डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी से सहमत हूँ ,, मुद्दा  अपना अपना बोछ उठाना है ,पर अभिव्यक्ति अच्छी हुई है ,,,बधाई |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 20, 2015 at 5:26pm

आदरणीय राज जी

आपकी कहानी का सन्देश मुखर है  .  शिल्प पर लोगो ने कुछ सवाल उठाये है . मेरा अभिमत है की प्रधानमंत्री  को पहचानना  मुख्य मुद्दा नहीं है मुख्य मुद्दा अपना बोझ खुद उठाने का है इ इस सन्देश में कथा सफल है .

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 20, 2015 at 5:12pm

आज के समय में देश में ऐसा द्रश्य तो अवश्य देखने को मिल जाएगा लेकिन शायद प्रधान मंत्री जी ऐसे शायद बीते समय की  बात ही लगती है ........ बरहाल  कथा में निहित सन्देश अवश्य नज़र आया रहा है. बाकी कथा शिल्प पर तो गुनिजन लोग ही राय दे सकते है ......

मेरी और से अवश्य सुन्दर और सार्थक कथा के लिए बधाई स्वीकार करे आदरनीय राजेश कुमारी जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 20, 2015 at 4:45pm

कृष्ण मिश्रा जी,आपकी कसौटी पर लघु कथा खरी नहीं उतरी इसका मुझे खेद है रही बात प्रधान मंत्री की पहचान की तो मुद्दा ये नहीं की उसने पहचाना या नहीं यहाँ कहानी का मर्म आप नहीं पकड़ सके मंत्रियों के लिए या सरकार के लिए ऐसे गाँव के लोगों के दिलों में इतनी कडवाहट भर चुकी है की उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता की वो कौन सा मंत्री है जो देश का बोझ नहीं उठा सकते उनसे क्या एक गठरी उठा के एहसान लेना जीवन की तल्खियाँ इंसान को कितना स्वाभिमानी बना देती हैं यही इस लघु कथा के माध्यम से दिखने की चेष्टा की है  और आप प्रधानमन्त्री को कौन पहचानता कौन नहीं बस इसी बात पर जोर दे रहे हैं .खैर आपने पाठक का धर्म निभाया मैंने एक लेखक का निभाते हुए स्पष्टीकरण दे दिया |

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 20, 2015 at 2:41pm

जरूरी नही की प्रधानमंत्री को गाँव के लोग पहचाने ही!ऐसे बहुत से गाँव भारत में है जहाँ की पूरा पूरा गाँव में कोई एक-आध-ही प्रधानमंत्री

को शक्ल से पहचाने!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 20, 2015 at 2:38pm

निधि जी का प्रश्न भी वाजिब ही लगता है!क्युकी आपने खुद ही लिखा है के--"बेटे के पास गई थी  एक बार बस तब देखा था कैसा होवे टीवी”|

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 20, 2015 at 2:35pm

आदरणीय! rajesh kumari जी! आपकी पिछली लघुकथा के कारण,इस नवीन कथा से बहुत ज्यादा ही उम्मीदे बंध गयी थी,पर यह लघुकथा उस स्तर तक पहुँच नही पाई!! सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 20, 2015 at 1:37pm

बहुत बहुत शुक्रिया प्रिय निधि जी ,आपने ऊपर पढ़ा होगा की बेटे के यहाँ उसने टीवी देखा ,फिर वो एक फौजी की माँ है क्या प्रधान मंत्री को नहीं पहचानती होगी ?प्रधान मंत्री एक ऐसा शख्स होता है जिसको शायद ही कोई न जानता हो |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आ. सुरेन्द्र भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है बोझ भारी में वाक्य रचना बेढ़ब है ..ऐसे प्रयोग से…"
10 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेंदर भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई आपको , गुनी जन की बातों का ख्याल कीजियेगा "
57 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय आजी भाई , ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है , दिली बधाई स्वीकार करें "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"वाह वा , आदरणीय लक्ष्मण भाई बढ़िया ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय आजी भाई उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. सुरेन्द्र भाई "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आभार आ. गिरिराज जी "
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
3 hours ago
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय नीलेश भाई जी सादर नमस्कार जी। अहा! क्या कहने भाई जी बेहद शानदार और जानदार ग़ज़ल हुई है। अभी…"
4 hours ago
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो"
10 hours ago
Aazi Tamaam commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"अच्छी रचना हुई आदरणीय बधाई हो"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service