हर फूल खुश्बू नहीं देता,हर कली फूल नहीं बनती
हर चमकता रात में तारा नहीं होता ,हर चमकता पत्थर हीरा नहीं होता
जरा संभल के मेरे दोस्त हर बात सच्ची नहीं होती
हर मीठा स्वर अच्छा नहीं होता, हर खड़ी जीज सहारा नहीं होती,
हर खून का रिश्ता अपना नहीं होता ,हर दोस्त सच्चा नहीं होता .
जरा सभंल........
हर रात काली नहीं होती,हर दिन उजाला नहीं होता,
हर रात दिवाली नहीं होती, हर रोज होली नहीं होती.
जरा संभल......
हर लाल कपड़ा कफ़न नहीं होता, हर मुर्दा दफ़न नहीं होता
हर किताब वाला ज्ञानी नहीं होता, हर माला वाला ध्यानी नहीं होता
जरा संभल .....
हर फल पका नहीं होता ,हर माली रखवाला नहीं होता,
हर इंसान अच्छा नहीं होता, हर खिवैया पक्का नहीं होता
जरा संभल.....
हर जवानी दीवानी नहीं होती,हर प्यार की कहानी नहीं होती
हर बचपन जवान नहीं होता, हर बुढ़ापे का सहारा नहीं होता
जरा संभल ..........
हर जनम सफल नहीं होता,हर करम धरम नहीं होता,
हर पतझड़ बसंत नहीं लाता,हर अच्छा आदमी प्रसिद्धि नहीं पाता
जरा संभल.........
हर साज आवाज नहीं देता ,हर शिकारी बाज नहीं होता,
हर जंवा जांबाज नहीं होता,हर जाम पैगाम नहीं होता.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी,
आपके सुझाव के लिए तहे दिल से आभार. आपका मार्गदर्शन बहुमूल्य है. आपका प्रेम यह ही बनाए रखिये .
आदरणीय श्याम मठपाल जी ,ये रचना आपका पुनः प्रयास मांग रही है , आशा है आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे , भाव अच्छा है , पुनः संपादित करिए ! सादर
आदरणीय बृजेश नीरज जी, आपके टिप्पणी के लिए धन्यवाद. सीखने का क्रम कभी बंद नहीं होता. अगर आप कुछ मार्गदर्शन करते तो अच्छा होता.
आ. डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ,
तहे दिल से आभार.
आ.जीतेन्द्र पिस्टोरिया जी,
बहुत धन्यवाद.
आ. मोहन सेठी जी,
बहुत शुक्रिया .
आ.डॉ. विजय शंकर जी,
उत्साहवर्धन की लिए हार्दिक आभार.
आ.मिथिलेश वामनकर जी,
हार्दिक आभार
आ० मठपाल जी
परिगणन शैली में आपने बहुतेरे सत्य से अवगत कराया . सुन्दर. सादर.
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