For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हर फूल खुश्बू नहीं देता,हर कली  फूल नहीं बनती           

हर चमकता रात  में तारा नहीं होता ,हर चमकता पत्थर हीरा नहीं होता

जरा संभल के मेरे दोस्त हर बात सच्ची नहीं होती

हर मीठा स्वर अच्छा नहीं होता, हर खड़ी जीज सहारा नहीं होती,

हर खून का रिश्ता अपना नहीं होता ,हर दोस्त सच्चा नहीं होता .

जरा सभंल........

हर रात काली नहीं होती,हर दिन उजाला नहीं होता,

हर रात दिवाली नहीं होती, हर रोज होली नहीं होती.

जरा संभल......

हर लाल कपड़ा कफ़न नहीं होता, हर मुर्दा दफ़न नहीं होता

हर किताब वाला ज्ञानी नहीं होता, हर माला वाला ध्यानी नहीं होता

जरा संभल .....

हर फल पका नहीं होता ,हर माली रखवाला नहीं होता,

हर इंसान अच्छा नहीं होता, हर खिवैया पक्का नहीं होता

जरा संभल.....

हर जवानी दीवानी नहीं होती,हर प्यार की कहानी नहीं होती

हर बचपन जवान नहीं होता, हर बुढ़ापे का सहारा नहीं होता

जरा संभल ..........

हर जनम सफल नहीं होता,हर करम धरम नहीं होता,

हर पतझड़ बसंत नहीं लाता,हर अच्छा आदमी प्रसिद्धि नहीं पाता

जरा संभल.........

हर साज आवाज नहीं देता ,हर शिकारी बाज नहीं होता,

हर जंवा जांबाज नहीं होता,हर जाम पैगाम नहीं होता.

 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 684

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Mathpal on March 31, 2015 at 1:33pm

आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी,

आपके सुझाव के लिए तहे दिल से आभार. आपका मार्गदर्शन बहुमूल्य है. आपका प्रेम यह ही बनाए रखिये .

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 8:32pm

आदरणीय श्याम मठपाल जी ,ये रचना आपका पुनः प्रयास मांग रही है , आशा है आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे , भाव अच्छा है , पुनः संपादित  करिए ! सादर 

Comment by Shyam Mathpal on March 28, 2015 at 4:11pm

आदरणीय बृजेश नीरज जी, आपके टिप्पणी के लिए धन्यवाद. सीखने का क्रम कभी बंद नहीं होता. अगर आप कुछ मार्गदर्शन करते तो अच्छा होता.

Comment by बृजेश नीरज on March 28, 2015 at 7:25am
ये किस विधा में लिखा है आपने। मुझ अकिंचन का मार्गदर्शन करें आदरणीय।
मैं मानता हूँ हर कोई कवि नहीं होता, कुछ भी लिख देना कविता नहीं होती।
कृपया बताएँ क्या मैं सही हूँ? साहित्य के क्षेत्र में नया हूँ इसलिए आपका मार्गदर्शन मेरे लिए उपयोगी होगा।
सादर!
Comment by Shyam Mathpal on March 27, 2015 at 3:57pm

आ. डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ,

तहे दिल से आभार.

Comment by Shyam Mathpal on March 27, 2015 at 3:54pm

आ.जीतेन्द्र पिस्टोरिया जी,

बहुत धन्यवाद.

Comment by Shyam Mathpal on March 27, 2015 at 3:52pm

आ. मोहन सेठी जी,

बहुत शुक्रिया .

Comment by Shyam Mathpal on March 27, 2015 at 3:51pm

आ.डॉ. विजय शंकर जी, 

उत्साहवर्धन की लिए हार्दिक आभार.

Comment by Shyam Mathpal on March 27, 2015 at 3:50pm

आ.मिथिलेश वामनकर जी,

हार्दिक आभार 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 27, 2015 at 11:59am

आ० मठपाल जी

परिगणन शैली में आपने बहुतेरे सत्य से अवगत कराया . सुन्दर. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी * दादा जी  के संग  तो उमंग  और   खुशियाँ  हैं, किस्से…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   देवों की है कर्म भूमि, भारत है धर्म भूमि, शिक्षा अपनी…"
19 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
Monday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service