मन के कमरे में कैद हमारे भाव विचार
बने वाणी के मोती ,कलम की बहती धार
सुवासित हो फ़िज़ा ,पढ़े सुने संसार
बुने सतरंगी सपने,बरसे प्यार की फुहार
डूबे खुश्बुओं में ,सुगन्धित हो बहार
खुशिओं के फूटे झरने ,भीगें बार -बार
मिले जीने की उमंग,सपना हो साकार
भूल सारे गम ,नव अंकुर का आधार
चाहतों की संतुष्टि ,आशीष से सरोबार
खुले परिचय के द्वार ,जुड़ा नया परिवार
धन्य हो गए हम ,दिलों के जुड़े तार
भूल जोड़ बाकी का गणित ,मिला जीने का सार
मिल गया सब कुछ ,अब कैसा व्यापार
बन गया मन खुला आँगन ,बरसे सावन की बौछार
हो गया पवित्र पावन, अंकुरित हो रहे नव विचार .
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
Priya Maharshi Tripathi Ji,
Bahut dhanyabad.
सुन्दर ,प्रस्तुति ,,हार्दिक बधाई आ. Shyam Mathpal जी |
आदरणीय कृष्णा मिश्रा जी,
आपको रचना अच्छी लगी. धन्यवाद.
भूल जोड़ बाकी का गणित ,मिला जीने का सार
मिल गया सब कुछ ,अब कैसा व्यापार
बन गया मन खुला आँगन ,बरसे सावन की बौछार
हो गया पवित्र पावन, अंकुरित हो रहे नव विचार .
ये पंक्तियाँ बहुत सुन्दर लगीं! बहुत बहुत बधाईयां आदरणीय shyam mathpal जी!
आ.हरी प्रकाश दुबे जी , आपका स्नेह हमेशा मिलता है. हृदय से आभार.
आदरणीय श्याम मठपाल जी, सुन्दर भाव , सुन्दर रचना , बधाई आपको ! सादर
आ.डॉ.विजय शंकर जी,आ.नवीन मणि त्रिपाठी जी ,आ.श्याम नारायण वर्मा जी ,आ.सोमेश कुमार जी व डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी.
आप सब की दुआ व कृपा है. आपको रचना पसंद आई तहे दिल से आभार.
सुंदर भावपूर्ण रचना
सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ । |
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