(212 212)
मुतदारिक मुरब्बा सालिम
चांदनी रात है
वाह क्या बात है I
रात का तम गया
अब धवल प्रात है I
मौन वंशी लिए
वह खड़ा तात है I
पुष्प के बाण से
काम का घात है I
राग-अनुराग की
दिव्य बरसात है I
कामना है मधुर
भाव अवदात है I
नन्द का लाडला
नेह निष्णात है I
आपगा तीर पर
राधिका स्नात है I
नेह ‘गोपाल’ का
सर्व विख्यात है I
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आ० समर कबीर साहेब
आप जसे गजलगो से संस्तुति मिलना आनंद की बात है . सादर.
आ० विजय सर !
आपके स्नेह को सादर प्रणाम .
आ० विजय सर !
आपके स्नेह को सादर प्रणाम .
आ० हरिप्रकाश जी
सादर अनुग्रहीत .
आ० नीलेश जी
आपकी संस्तुति बहुत मायने रखती है . सादर .
आ० श्याम नारायण वर्मा जी
आपका सादर आभार .
आ० वामनकर जी
आपका ऋणी हूँ. सादर .
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी.
वाह वाह क्या बात है. आनंद आ गया .हार्दिक बधाई
लाजव़ाब गज़ल!अभिनन्दन आदरणीय!
बहुत सुन्दर रचना .....आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी. ....मेरी और से बधाई स्वीकार करे.
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