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कोकिला मुझको जगाती- जवाहर

कोकिला मुझको जगाती, उठ जा अब तू देर न कर

देर पहले हो चुकी है, अब तो उठ अबेर न कर

उठ के देखो अरुण आभा, तरु शिखर को चूमती है

कूजते खगवृन्द सारे, कह रहे अब देर न कर

उठ के देखो सारे जग में, घोर संकट की घड़ी है

राह कोई भी निकालो, सोच में तू देर न कर

देख कृषकों की फसल को, घोर बृष्टि धो रही है,

अन्नदाता मर रहे हैं,  लो बचा तू देर न कर

ईमानदारी साथ मिहनत, फल नहीं मिलता है देखो,   

लूटकर धन घर जो लावे, उनके यश में शेर न कर   

राह कर उनके तू दुर्गम, लूटते जो नारी अस्मत

राह में कंटक बिछा दो, मारकर तू ढेर न कर

जाल में उलझा न उनको, मातृशक्ति को बढ़ाओ

नरपिशाचों को खंगालो, हो के निर्भय देर न कर.

.

(मौलिक व अप्रकाशित)

 - जवाहर लाल सिंह 

गजल लिखने के प्रयास में यह मेरी दूसरी गजल

 

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 9, 2015 at 10:06pm

आदरणीय नजील भाई साहब, सादर नमस्कार! आपका सुझाव अति उत्तम है मैं पढ़ने और समझने की कोशिश करूंगा ..सादर!

Comment by Nazeel on April 9, 2015 at 9:57pm

आदरणीय  भाई जी अच्छी कोशिश  की है आपने  बधाई।  आप आदरणीय तिलक राज कपूर जी की ग़ज़ल की कक्षा  ग्रुप ज्वाइन कर ले  और आदरणीय भाई वीनस  केसरी जी का का ग्रुप ग़ज़ल की बाते  ज्वाइन कर ले । वाही से आपको  बहुत सहायता  मिलेगी एक बार फिर से हार्दिक  बधाई । 

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