212---1222---212---1222 |
|
झूठ भी नहीं कहते, सत्य भी नहीं कहते |
दो नयन तुम्हारे पर, मौन भी नहीं रहते |
|
प्रीत का कहो कैसे, आप सुख उठाएंगे |
प्रेम वेदना में जब, रंच भी नहीं दहते |
|
यश तनिक घटाता हैं, प्रेम की निकटता को |
वो नदी हुए जब से, नैन से नहीं बहते |
|
जीव ने जरा तन से, अंततः विदा पाई |
आप ही कहें कब तक, कष्ट हम भला सहते |
|
दर्प से कुटुम्बों को, दंश ही मिले समझो |
इस अहं की टक्कर में, घर सदा मिले ढहते |
|
------------------------------------------------------ |
Comment
आदरणीय गिरिराज सर, सही कहा आपने. पुनः प्रयास करता हूँ. हार्दिक आभार सर
आदरणीय मिथिलेश भाई , मुझे दुख है कि दौलतें के बदले मै कोई शब्द 212 मात्रा मे नहीं सुझा पाया जो सानी के भावों को तार्किक रूप से संतुष्ट कर पाये , लेकिन बदलाव के बिना शे र सही नहीं होगा ऐसा मुझे लगता है , आपभी सोचिये , मै भी सोचता हूँ ॥
एक और लाजव़ाब गज़ल पर!ढेरों दिली दाद कबूल करें आदरणीय! मतले ने तो दीवाना बना दिया हमें!गज़ब!
आदरणीय मितिलेश भाई , अच्छी गज़ल हुई है , दिली मुबारक बाद स्वीकार करें ॥
दो नयन तुम्हारे क्यूं, मौन भी नहीं रहते - दो नयन तुम्हारे पर, मौन भी नहीं रहते (क्यूँ कहने से , मौन रह नही सकते कहना सही होगा
दौलतें घटाती हैं, प्रेम की निकटता को
वो नदी हुए जब से, नैन से नहीं बहते -- उला मे दौलतें घटातीं है के बाद सानी में , वो नदी हुये कम से कम मुझे सही नही लग रहा है
तरक्कियाँ घटाती हैं, प्रेम की निकटता क्या ?
वो नदी हुए जब से, नैन से नहीं बहते ----- सोच के देखियेगा
जीव ने जरा तन से, अंततः विदा पाई
आप ही कहें कब तक, कष्ट को भला सहते -- मै मुतमइन नहीं हूँ , पर उला में जीव - कहने के बाद सानी में - सहता कहना पड़ेगा शायद --
दर्प से कुटुम्बों को, दंश ही मिला समझो ------ दर्प से कुटुम्बों को, दंश ही मिले समझो
इस अहं की टक्कर में, घर सदा मिले ढहते
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online