For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- अंततः विदा पाई (मिथिलेश वामनकर)

212---1222---212---1222

 

झूठ भी नहीं कहते, सत्य भी नहीं कहते

दो नयन तुम्हारे पर, मौन भी नहीं रहते

 

प्रीत का कहो कैसे, आप सुख उठाएंगे

प्रेम वेदना में जब, रंच भी नहीं दहते

 

यश तनिक घटाता हैं, प्रेम की निकटता को 

वो नदी हुए जब से, नैन से नहीं बहते

 

जीव ने जरा तन से, अंततः विदा पाई

आप ही कहें कब तक, कष्ट हम भला सहते

 

दर्प से कुटुम्बों को, दंश ही मिले समझो

इस अहं की टक्कर में, घर सदा मिले ढहते

 

------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
-----------------------------------------------------

Views: 747

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2015 at 5:11am

आदरणीय गिरिराज सर, सही कहा आपने. पुनः प्रयास करता हूँ. हार्दिक आभार सर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 14, 2015 at 8:21am

आदरणीय मिथिलेश भाई , मुझे दुख है कि दौलतें के बदले मै कोई शब्द 212 मात्रा मे नहीं सुझा पाया जो सानी के भावों को तार्किक रूप से संतुष्ट कर पाये , लेकिन बदलाव के बिना शे र सही नहीं होगा ऐसा मुझे लगता है , आपभी सोचिये , मै भी सोचता हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 14, 2015 at 7:17am
आदरणीय कृष्ण भाई हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 14, 2015 at 7:16am
आदरणीय गिरिराज सर मार्गदर्शन और सराहना के लिए आभार।
मतले पर आपका सुझाव उचित है
दौलते घटाती है के स्थान पर पहले तरक्कियां भी सोचा था मगर वज़्न 1212 हो रहा है फिर अर्थ-यश घटाते है किया उसे बदलकर दौलते किया।दंश वाले शेर में सुझाव सही है। जीव वाले शेर में कष्ट सहते को कष्टों को सहते मानकर लिया है। आपके मार्गदर्शन के लिए आभारी हूँ। नमन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 14, 2015 at 7:04am
आदरणीय जितेंद्र जी हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 14, 2015 at 7:03am
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 14, 2015 at 7:02am
आदरणीय समर कबीर जी सराहना के लिए आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 14, 2015 at 7:01am
आदरणीय शिज्जु भाई जी सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 13, 2015 at 10:50pm

एक और लाजव़ाब गज़ल पर!ढेरों दिली दाद कबूल करें आदरणीय! मतले ने तो दीवाना बना दिया हमें!गज़ब!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2015 at 9:18pm

आदरणीय मितिलेश भाई , अच्छी गज़ल हुई है , दिली मुबारक बाद स्वीकार करें ॥

दो नयन तुम्हारे क्यूं, मौन भी नहीं रहते -  दो नयन तुम्हारे पर, मौन भी नहीं रहते  (क्यूँ कहने से , मौन रह नही सकते कहना सही होगा

दौलतें घटाती हैं, प्रेम की निकटता को    

वो नदी हुए जब से, नैन से नहीं बहते    -- उला मे  दौलतें  घटातीं है  के बाद सानी में  , वो नदी हुये कम से कम मुझे सही नही लग रहा है  

तरक्कियाँ घटाती हैं, प्रेम की निकटता क्या ?

वो नदी हुए जब से, नैन से नहीं बहते     -----  सोच के देखियेगा

जीव ने जरा तन से, अंततः विदा पाई

आप ही कहें कब तक, कष्ट को भला सहते     -- मै मुतमइन नहीं हूँ , पर  उला में   जीव  -  कहने के बाद   सानी में - सहता कहना पड़ेगा शायद  --    

दर्प से कुटुम्बों को, दंश ही मिला समझो          ------  दर्प से कुटुम्बों को, दंश ही मिले समझो  

इस अहं की टक्कर में, घर सदा मिले ढहते 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
1 hour ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
19 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service