"बेटा जी आज दूरबीन से इतनी देर से आसमान में क्या ढूंढ रहे हो।"
"पापा जिस तेजी से प्रदूषण फैल रहा है, जल्दी ही पृथ्वी पर प्रलय आ सकती है। इसलिए मैं यह देख रही थी कि क्या कोई और ग्रह हमारी पृथ्वी जैसा है जहाँ हम भविष्य में रह सके।"
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
लघुकथा पर इस प्रयास के लिए हार्दिक शभकामनाएँ..
धन्यवाद डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
ताकि फिर उसे भी पृथ्वी की तरह प्रदूषित कर सकें और फिर नया गृह तलाश करें ....वाह्ह्ह रे स्वार्थी मानव !! क्या जबरदस्त विषय पर लघुकथा लिखी है आपने मजा आ गया नेहा जी ,शयद पहली कोई रचना पढ़ रही हूँ आपकी ,,मस्त है हार्दिक बधाई आपको |
बेहतरीन लघुकथा पर बधाई आदरणीया नेहा जी!
एक अलग ही विषय पर बेहतरीन लघुकथा, आदरणीया नेहा जी. बधाई स्वीकारें
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