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पेंडुलम .
पेंडुलम यही समझ रहे हो ना मुझे ,
यही भूल अगली सरकार की थी ,
और तुम्हे मिल गया ये मलाई ,
जिसे बारे प्यार से आपस में ,
बाटकर मस्ती से खा रहे हो ,
हमें चाहिए एक होनहार कर्मनिस्ट,
जो समझे हमें जाने हमें ,
और तुम हो की जानना ही नहीं चाहते ,
लोकतंत्र में युवराज दिखा रहे हो ,
यही ना हमें पेंडुलम समझ कर ,
उल्लू बना रहे हो ,
जिस जनता को तूम उल्लू समझ रहे हो ,
ओ सब जानती हैं ,
कोई पानी तक नहीं मांगता ,
जब ओ मरती हैं ,
अभी कोल्कता को ही देखो ,
क्या हस्र हुआ ,
चेत जाव जिसका खाते हो उसका सुनो ,
नहीं तो तुम ,
पेंडुलम की तरह झूलने लगोगे ,

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 10, 2010 at 11:08pm
Badi sey badi baato ko bhi aap apani rachnao mey badey hi sahajta sey kah detey hai. yey bahut hi badi baat hai, bahut sunder rachna. Thanks.
Comment by satish mapatpuri on June 9, 2010 at 5:25pm
अभी कोल्कता को ही देखो ,
क्या हस्र हुआ ,
चेत जाव जिसका खाते हो उसका सुनो ,
नहीं तो तुम ,
पेंडुलम की तरह झूलने लगोगे ,
बहुत ही सामयिक बात है, धन्यवाद.

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 9, 2010 at 3:03pm
Bahut accha likha hai Guru jee, sandesh bada gehra hai magar bahut hi saadgee se kaha gaya hai. Kavita ka Sheershak Pendulam bhi bahut sateek hai.
Comment by Admin on June 9, 2010 at 1:27pm
बहुत बढ़िया गुरु जी, साधारण लोगो के दिल की बात , बिलकुल साधारण तरीके से, साधारण शब्दों मे कविता के माध्यम से कह देना ही आपको विशेष बना देती है, बहुत ही बढ़िया रचना, धन्यबाद,

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