गर्मी में भीग जाते हैं
पसीने से
ठंढ में खड़े हो जाते हैं
रोयें...
हमारी त्वचा
तुरंत परख लेती है
मौसम परिवर्तन को
धूल-कण आने से पहले
बंद हो जाती हैं पलके
उन्हें पता चल जाता है
है कोई खतरा
सुगंध और दुर्गन्ध में
अंतर करना जानती हैं
ये नासिका
खट्टा, मीठा, तीखा सब
हमारी जिह्वा
हल्की सी आहट को
पहचान लेते हैं
हमारे कान
अर्थात
सभी अंग संवेदनशील हैं
हृदय के सिवाय
कर्तव्य पथ में
कभी आड़े नहीं आती
हृदय की संवेदनशीलता
चाहे कोई जले या मरे
हम हैं.....
संवेदनशील अंगों वाले
असंवेदनशील लोग
भाषण चालू है....
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट =>लघुकथा : विरोध
Comment
आदरणीय मिथिलेश जी, त्वरित लिखी गयी कविता पर आपसे उत्साहवर्धन करती टिप्पणी कविता को सार्थक कर गयी, बहुत बहुत आभार.
कमाल की अतुकांत, सर. शुरू में संवेदनाओं और सटीक तर्कभरी पंक्तियाँ अंत में लघुकथा का पंच. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय बागी जी
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