हर्षिता क्लास की सबसे खुबसूरत लड़की थी, अधम, रंजित और उसकी मित्र मंडली, सभी उससे दोस्ती के लिए लालायित रहते थे किन्तु वह तो बस अपने काम से काम रखती थी. एक दिन हर्षिता को अकेला देख रंजित उससे बोला,
“हर्षिता मैं तुम्हे अपनी बहन बनाना चाहता हूँ क्या तुम मुझे अपना भाई होने का अधिकार दोगी ?”
माँ बाप की इकलौती बेटी हर्षिता रंजित को भाई के रूप में पाकर बहुत ख़ुश हो गयी. अब उसका उठना बैठना रंजित के साथ-साथ उसके दोस्तों के साथ भी होने लगी.
हर्षिता कब अधम के साथ प्यार कर बैठी उसे पता भी नहीं चला और एक दिन वह सभी वर्जनाओं को तोड़ बैठी.
क्लास में आज एक और खुबसूरत लड़की ने एडमिशन ली थी. रंजित मुस्कुराते हुए बोला,
“अबे साले अधम, इस बार भाई बनने की बारी तेरी है”
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
सुन्दर रचना
इस रचना पर क्या कहूँ कुछ समझ में नहीं आ रहाहै गणेश भाई. यह किसी प्रस्तुति की सफलता भी है. लेखक के विचारों से पाठक के विचारों का एकाकार होना. ’जो है वह सही नहीं है’ को स्वर देती आम जीवन से उठायी गयी एक कुत्सित घटना को अच्छा आयाम मिला है.
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ
आदरणीय बागी जी , आज कल की नयी सभ्यता मे कुछ भी संभव है , अच्छी लगी आपकी लघुकथा , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय विजय निकोर जी, आपकी टिप्पणी से यह लघुकथा और अधिक समृद्ध हुई, बहुत बहुत आभार, स्नेह बना रहे.
उत्साहवर्धन करती सराहना युक्त टिप्पणी हेतु आभार आदरणीय जवाहर लाल जी.
सराहना हेतु आभार आदरणीय कृष्ण मिश्रा जी.
आपकी कथा से कोलिज समय की एक घटना याद आगयी उसे फिर कभी ,,,
परन्तु कथा सामाजिक जीवन से निकली है और बहुत मारक है आपको बधाई !
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी.
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