सात साल हो गये अत्याचार सहते सहते सोचा था कभी तो मनीष समझेगा उसे कभी तो उसके दिल मे उसके लिए प्यार जागेगा और कभी तो वो राधा को अपनी इस्तमाल की चीज़ के बजाय अपनी जीवन संगनी मानेगा!
पर नहीं अब भी वो वैसा ही था !!!! रोज़ दफ्तर से आकर वहाँ का गुस्सा राधा पर उतारना !आए दिन हर बात पे अपमानित करना गंदी गालियाँ देना !
पर आज तो हद ही हो गयी जब मनीष ने उसके चरित्र पर लांछन लगाया !
तडाक ****** एक ज़ोर का चाटा जडते हुए राधा ने उसका घर छोड़ने का एलान कर दिया।
राधा के जाने पर मनीष को एहसास हुआ आज उसने एक औरत के मान को ललकारा था ।
जिसका अपमान वो नहीं सह सकती।।।।।
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
Comment
सात साल से पहले चरित्र पर उँगली नहीं उठी थी वरना यह कदम पहले भी उठ सकता था i अन्तिम् पंक्तियां और मुखर हो सकती थी . सार्थक प्रयास.
आदरणीया प्रिया मिश्राजी,
भारतीय पारम्परिक स्त्री का सिन्दूर ही उसके सतीत्व तथा उसके अस्तित्व की अक्षुण्णता का परिचायक है. इससे आँखें फेर लेने वाले की प्रवृति या तो राक्षसी होती है, या फिर, उसे स्त्री के सतीत्व की महत्ता का ज्ञान नहीं होता. दोनों दशाओं में मिल रही किसी ललकार को सीख मिलनी ही चाहिये. आपकी इस लघुकथा के भाव बहुत ही गहन और सटीक हैं.
लेकिन प्रस्तुतीकरण बहुत सुधार मांगती है. आपने कायदे से किसी डिलिमिनेटर, यानि फुलस्टॉप या कॉमा, का प्रयोग नहीं किया है. इस ओर भी ध्यान रखा करें.
शुभेच्छाएँ
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