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अपेक्षा है तुझे....! (अतुकांत)

सब कुछ

है तेरा

तुझ पर, तेरे कारण ही

और तेरे ही लिए हैं

अपने दामन में पाले हैं तूने

समान, असमान भाव से 

कांटे भी, फूल भी

देव और दानव  

जल भी तेरा, थल भी

मरुस्थल और तेरे ही है पर्वत

तेरी ही नदियाँ

तेरा ही आश्रय है, सागर को

अश्विन से फाल्गुन तक

सिकुड़ती है,  तू

ज्येष्ठ की दहक में 

तपती और पिघलती रही

अथाह सहनशीलता है,  तुझमे

इस तरह सिकुड़ने और

पिघलने के बाद

बस!  एक अपेक्षा है तेरी

 

कोई बरस जाए तुझ पर

भर दे, तुझमें

इतनी तृप्ति और नमी 

कि, तू संतृप्त होकर

बिखेर दे सारे जहाँ में

खुशियाँ ही खुशियाँ

सर्वस्व है तू

फिर भी, हमेशा की तरह

इस वर्ष भी

अपेक्षा है तुझे...!

   जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

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Comment

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Comment by गिरिराज भंडारी on May 11, 2015 at 9:34pm

आदरनीय जीतेन्द्र  भाई , एक अलग ही भाव में बहुत खूबसूरत रचना हुई है  , आपको हार्दिक बधाई रचना के लिये ॥

Comment by मनोज अहसास on May 11, 2015 at 3:38pm
नवीनता लिए हुए खूबसूरत भाव
बधाई सर

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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