अकेला-एकान्त
असंग आत्म-विश्वास का
गम्भीर भान
अकेला-एकान्त
कभी करी हुई विलीन हुई बातें
अनबूझा विशाद
संसारी गतिविधियों से
परिवर्तित प्रवृत्तियों से
बदले व्यवहार से शब्दों की चोट से
कुछ हुआ अचानक
हमारे बीच का बहता वह सुगम प्रवाह
घनिष्ठ अपनत्व
अमृत-सा सुख
सूख गया
खुशियों का हिस्सा जो लगता था मेरा था
अब मेरा न था
असंवेदनाओं के धरातल पर अकस्मात
काँच-सा फूट गया
खुशियों के टुकड़ों के चूर को बुहारते
विश्लेषण के भी विश्लेषण में तल्लीन
अश्रुपूर्ण है आज अशान्त
अकेला-एकान्त
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विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय कृष्ण जी।
// बहुत भावपूर्ण रचना... एकांत भाव को प्रस्तुत करती प्रभावी प्रस्तुति//
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहन सेठी जी।
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई।
प्रतिक्रिया से रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय केवल प्रसाद जी।
आपका हार्दिक आभार, श्याम नारायण जी।
//एकांत में विगत में हुई बातों पर बरबस ही ध्यान जाता है और व्यक्ति उन्ही में खो जाता है | इसको कागज़ पर उतारने आपकी सशक्त लेखनी को नमन //
ऐसी सराहना दे कर आपने मेरा मनोबल बढ़ाया है, आदरणीय़ लक्ष्मण भाई जी। हार्दिक धन्यवाद।
आपसे मिली सराहना से मेरा मनोबल बढ़ा। हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय जितेन्द्र जी।
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय विजय शंकर जी।
//मैं आपकी कविताऐं सुनता रहता हूँ ,बहुत अच्छा लिखते हैं आप,इस कविता के लिये भी दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं //
आदरणीय समर कबीर जी, आपने यह कह कर मेरा मनोबल बढ़ाया है। आपका हार्दिक धन्यवाद।
शब्दों को चोट वाकई बहुत गहरी होती है,अच्छे खासे रिश्ते भी दरक जातें है.व्यावहारिक और सार्थक रचना!हार्दिक बधाई आदरणीय विजय सर!
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