For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

             स्वप्न-भाव

मुझको सपने याद नहीं रहते

दर्द की कोख से जन्मे एक सपने के सिवा

आत्मीय पहचान का गहरापन ओढ़े

बार-बार लौट आता है वह

पलकों के पीछे के अंधेरों से धीरे-धीरे

जीवन के अंगारी तथ्यों की ज्वलन्त

सच्चाई की चिरन्तन खोज में

आदतन अनदीखे आत्मा तक मेरी

तुम्हारी तरह

शायद रह गया हो उसका कुछ अपना यहाँ

या, तुम ही कुछ भूल गई थी क्या

जो रह गया प्राणों में काँटे-सा चुभा

दर्द भरे अकुलाते अनुभव-सा 

मुझमें

लिए दुख की कथाएँ

आशंका की काली छायाएँ

हमेशा के लिए ...

आत्म-मन्थन करती बेचैन भीतरी सोच

खोल देती है अधबने सपने में भी

नव-आविश्कृत

अर्थहीन प्रश्नों के द्वार

 -- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 762

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2015 at 4:56pm

//आत्म-मन्थन करती बेचैन भीतरी सोच
खोल देती है अधबने सपने में भी
नव-आविश्कृत
अर्थहीन प्रश्नों के द्वार//

आदरणीय विजय निकोर साहब, यथार्थ की अभिव्यक्ति हुई है, आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी, बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें.

Comment by vijay nikore on June 14, 2015 at 10:12pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई गिरिराज जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 14, 2015 at 7:58am

आदरणीय विजय भाई ,  अमर विरह प्रेम  की कभी न ख़तम होने वाला इंतिज़ार ।  मार्मिक , सुन्दर वर्णन । हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on June 14, 2015 at 3:54am

आपने इस रचना को मान दिया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कांता जी।

Comment by kanta roy on June 9, 2015 at 12:39pm
शायद रह गया हो उसका कुछ अपना यहाँ
या, तुम ही कुछ भूल गई थी क्या
जो रह गया प्राणों में काँटे-सा चुभा
दर्द भरे अकुलाते अनुभव-सा 
मुझमें ........ बहुत अपना सा लगा पढकर आपकी यह रचना आदरणीय विजय निकोर जी ...... हार्दिक बधाई स्वीकार करें
Comment by vijay nikore on June 9, 2015 at 10:36am

आदरणीय सौरभ भाई, आपकी इस प्रतिक्रिया से बहुत प्रोत्साहन मिला, लगा कि मैं और भी अच्छा लिखूँ, ओ बी ओ के साथ बढ़ता चलूँ।

हृदयतल से आपका आभार।

Comment by vijay nikore on June 9, 2015 at 10:31am

आदरणीय श्री सुनील जी, रचना को समय देने के लिए और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on June 9, 2015 at 10:29am

आदरणीय केवल प्रसाद जी, सराहना के लिए हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on May 30, 2015 at 8:28am

//वेदने ! तू भी भली बनी

तुझ मे ही तो मैंने पायी अपनी छांह घनी  ----------मैथिलीशरण गुप्त जी की ये पंक्तियाँ आपको  सादर समर्पित //

मैथिलीशरण गुप्त जी की यह पंक्तियाँ मुझको समर्पित करके आपने मेरी रचना को बहुत मान दिया है।

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

Comment by vijay nikore on May 29, 2015 at 7:11am

आदरणीय समर कबीर जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
4 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
8 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service