स्याह धब्बा
ढलते सूरज-से रिश्ते की बुझती लालिमा
सिकुड़ती सिमटती जा रही
अनकही बातों के अरमानों की
अप्राकृतिक अकुलाहट
अपने ही कानों में भयानक
दुर्घटना-सी
अमावस-सी अँधियारी कसकती रात
डरता है व्याकुल बेसुध मन
कि अब तुम नहीं हो पास
बहता है दुख
बेचैन बदनसीब रिश्ता ...
अब स्याह धब्बे-सा
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-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
// रिश्तों के मर्म और बिछोह सी स्थिति में होने और होने जैसे की पीड़ा को अभिव्यक्त करती गहन पंक्तियाँ शाब्दिक हुई है //
हृदयतल से आपका आभार, आदरणीय मिथिलेश जी। इतने समय से मैंने यहाँ आभार प्रकट नहीं किया, अत: क्षमाप्रार्थी हूँ।
// आकुल मन की हताशा हो या प्रेम के उत्कट आवेग से उपजी आंतरैक पीड़ा, आपसे शब्द पा कर मानो जीवित हो उठते हैं //
आपसे मिली सराहना से मेरा मनोबल बढ़ता है, और मैं आभारी हूँ आदरणीय भाई सौरभ जी। मुझको बहुत खल रहा है कि इतने समय से मैंने यहाँ आभार प्रकट नहीं किया। क्षमाप्रार्थी हूँ।
आदरणीय विजय निकोर सर, रिश्तों के मर्म और बिछोह सी स्थिति में होने और होने जैसे की पीड़ा को अभिव्यक्त करती गहन पंक्तियाँ शाब्दिक हुई है. बहुत बहुत बधाई इस सशक्त रचना के लिए.
आकुल मन की हताशा हो या प्रेम के उत्कट आवेग से उपजी आंतरैक पीड़ा, आपसे शब्द पा कर मानो जीवित हो उठते हैं, आदरणीय विजय निकोर साहब.
हृदय से बधाई लीजिये इस गहन मनोदशा की सान्द्र अभिव्यक्ति पर.
सादर
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय विनय कुमार सिंह जी।
//सुंदर काव्य जो भावनाओ को अंत:करण तक झकझोरती चली जाती है//
इस भावना से मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय केवल प्रसाद जी।
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कांता जी।
आपका स्नेह और प्रोत्साहन मेरी अमूल्य निधि है, आदरणीय भाई शर्दिन्दु जी। आभारी हूँ।
आदरणीय समर कबीर जी, रचना पर पंक्ति दर पंक्ति दाद देने के लिए आपका हार्दिक आभार।
आदरणीय विजय सर ..आपकी रचनायें बहुत गंभीर होती हैं ..सोच को नए आयाम देती इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
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