“सुन री छोटी ! सीख कुछ मुझसे. जब देखो मुंह उघारे घूमती रहे है, घूँघट काढ़ा कर |” “ना जीजी हम नही बन सके तुम्हारे जैसे पर्देदार ! देखी हैं हम तुम्हारी नजर.. घूँघट के पीछे से घूरे है छुटके देवर जी का शरीर जब देखो तब |” “का फायदा ऐसे घूँघट का..?” देवरानी ने पलट जवाब दे मारा जेठानी पर |
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ जी प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया .
पर्दे के पीछे पर्दानशीं है.. . यह पर्दानशीं कई क्रियाओं की प्रतिक्रियाओं का कारण हुआ करती है.
हार्दिक बधाइयाँ इस ऑब्जर्वेशन के लिए ..
सादर
शुक्रिया नेहा जी , मैं भी गौरवान्वित हूँ आपकी प्रतिक्रिया से ..
आ. श्याम नारायण वर्मा जी हार्दिक आभार
आ. हरिप्रकाश दुबे जी हार्दिक धन्यवाद
बहुत सुन्दर !! लघुकथा के लिये बधाइयाँ ॥ |
सुन्दर रचना आ. Sudhir Dwivedi जी , "देखी हैं हम तुम्हारी नजर.. घूँघट के पीछे से घूरे है छुटके देवर जी का शरीर जब देखो तब |" ये पंक्तियाँ कमाल करती है ! बधाई आपको
आ. मिथिलेश जी , आभार | सादर
आदरणीय जीतेन्द्र जी .. हार्दिक धन्यवाद
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