"समीर जी , क्या रूतबा है भई आपका ...!!! जहाँ भी जाते हो ..यार , छा जाते हो ! " --- अजय को गर्व था अपने दोस्त पर । समीर का जलवा तो उसके हर अंदाज़ से ही झलकता था। उसकी बातों से ही मंत्रालय में उसकी पद प्रतिष्ठा का अनुमान चल जाता है। जब साले साहब को मंत्रालय में जरूरी काम करवाने की जरूरत आन पडी तो अजय बडे गर्वित हो साले साहब के साथ मंत्रालय की ओर निकल लिए ।आजतक मंत्रालय के दर्शन भी नही किये थे उसने । दोस्त की मेहरबानी से यहाँ तक आने का अवसर भी प्राप्त हुआ । मन गदगद हुआ जा रहा था । मंत्रालय के अंदर प्रवेश करते ही सामने सुरक्षाकर्मी की पैनी नजर से अकबकाया हुआ अजय अपने आप को संभालता हुआ समीर जी का पता पूछा । सुरक्षाकर्मी का युँ उपेक्षित नजरों से उसे देखना अच्छा नही लगा जरा भी ....दोस्त को जरूर सुरक्षाकर्मियों के इस व्यवहार के बारे में बतायेगा ।
मन में गंथन मंथन करता हुआ साले साहब के साथ , जब निश्चित फ्लोर वे पहुँचे तो समीर जी की पूर्णरूपेण व्यक्तित्व से सामना हुआ।सामने की केबिन में समीर जी चाय का ट्रे हाथ में संभाले हुए अपने अधिकारी द्वारा निकम्मेपन की उपाधि से नवाज़े जा रहे थे ।
कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
ग़ज़ब ! अचम्भित कर दिया ! बहुत खूब !!
अब आप प्रस्तुतीकरण पर ध्यान दें आदरणीया. अर्थात अपनी प्रस्तुति को पढ़ जाइये. देखिये कथा के वाक्यों में क्या सुधार हो सकता है.
सादर शुभकामनाएँ
सटीक व्यंग ....आज कल के ये कर्मचारी भी रिश्वत का पैसा बना लेते हैं ..तो बाहर रुतबा दिखाते ही हैं .... पिछले दिनों कोई ऐसा ही व्यक्ति समाचार में था जिसकी करोड़ो की प्रापर्टी निकली थी ....प्रभावी कथा ..बधाई
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