अनमनी आकुल अखिल की आस्थाएं
(मधु गीति सं. १७२५ , दि. १४ मार्च, २०११)
अनमनी आकुल अखिल की आस्थाएं, व्यवस्था की अवस्था का सुर सुधाएं;
चेतना भरकर व्यवस्थित विश्व करके, संतुलन औ साम्य को सुन्दर बनाएं.
दिए दोलन धरणि के हर एक अणु में, चींटियों के चलन से पृथ्वी हिलाएं;
आत्म शक्ति कर प्रतिष्ठित धर्म लाएं, भ्रात्रवत व्यवहार करके उर संवारें.
मात्र शक्ति भक्ति औ सेवा पिरोकर, सहजता से शून्य को उज्जवल बनाएं;
आचरण संचरण कर स्वस्थित सवल कर, दीनता की दिवारों को शीघ्र ढाएं.
अचल आलम्वन हृदय में नित बसाएं, विकलता की बूँद से विष्फोट लाएं;
सद्गति को गति दिये शाश्वत बनाएं, विलखते से जीव के हृद को सुधाएं.
चीत्कारों के सघन वातावरण में, सृष्टि उपकारों की है मन भेद ढाएं;
बनाकर वृह्माण्ड को ‘मधु’ की सरायें, सरसती प्रभु व्यवस्था में सुधा लाएं.
रचयिता : गोपाल बघेल ‘मधु’
टोरोंटो, ओंटारियो, कनाडा
Comment
आत्म शक्ति कर प्रतिष्ठित धर्म लाएं, भ्रात्रवत व्यवहार करके उर संवारें.
मात्र शक्ति भक्ति औ सेवा पिरोकर, सहजता से शून्य को उज्जवल बनाएं;
बेहद खुबसूरत काव्यकृति हेतु बधाई
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