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जिंदगी री (गजल,मनन कु॰ सिंह)

2122        2122    2122    2122


जब कहेगी तब करेंगे नाम तेरे जिंदगी री।
कब रहेगी जो चलेगी साथ घेरे जिंदगी री?


माँगता हूँ  मैं हमेशा जिंदगी से जिंदगी पर,
दे कहाँ पायी अभी जो बात टेरे जिंदगी री।


आ गयी थीं तब सलोनी ऊँघती कैसी घटाएँ,
दे गयी थी देख तब भी उष्ण फेरे जिंदगी री।


बैठकर मैं शांत कैसा देखता था बूँद जल का 
आग जैसा फिर जलाया रे घनेरे जिंदगी री।


कब लगी मैं सोचता हूँ रे लगी कैसे भला जब
बेलगी की बात थी तब भी अनेरे जिंदगी री।


चाहतें हों जिंदगी तो कब रहेगी जिंदगी भी?
चाहतें होती रहेंगी शब-सबेरे, जिंदगी री।

'मौलिक व अप्रकाशित ' @मनन

अनेरे=बेमतलब

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Comment

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Comment by Manan Kumar singh on June 8, 2015 at 11:22pm
आ.गिरिराज भाई, बहुत बहुत धन्यवाद;उचित संशोधन करता हूँ,सादर।

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Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 6:04pm

आ. मनन भाई , बढ़िया गज़ल कही , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें । 

मतले के सानी को  ऐसा कहें तो -- कब रहेगी  जो (वो )चलेगी साथ घेरे जिंदगी री 

और दूसरे शे र के उला को -- माँगता हूँ  मैं हमेशा जिंदगी से जिंदगी  पर ( ही )  -- ही कहने दे तकाबुले रदीफ का दोष भी आ रहा है ।

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