For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मान्यता(लघु कथा,मनन कु. सिंह)

पाठ्य पुस्तक में अपनी कविता देखकर कविता बहुत खुश हुई।पर यह क्या,कवयित्री की जगह तो नाम किसी कामिनी देवी का था।उसने कामिनी देवी का पता नोट किया,पता करने पर पता चला कि कामिनी एक बहुत ही लब्ध-प्रतिष्ठ हिंदी साहित्यकार के खानदान से है,जो अब इस दुनिया में नहीं हैं।कविता कामिनी से मिलने पहुँच गयी,बोली-
'तुमसे ऐसी उम्मीद न थी ।तूने मेरी कविता अपने नाम से पाठ्य क्रम में शामिल करा लिया।'
- 'ऐसी उम्मीद तो तुमसे मुझे नहीं थी,तू मेरी कविता को अपनी कह रही।'
-'अच्छा,चोरी और सीनाजोरी?'
-'होश की बातें करो,मैं तेरे मुँह नहीं लगना चाहती,अपनी साहित्यिक विरासत का मुझे तो खयाल रखना है न?
-'मेरी यह कविता दस वर्ष पहले हैदराबाद के प्रतिष्ठित हिंदी अखबार में छपी थी',कविता गुर्रायी।
-'ज्यादा तेवर न दिखा,हो सकता है तूने मेरी कविता तब चुरा ली हो',कामिनी रोबीले अंदाज में बोली।
कविता हतप्रभ थी।उसकी मान्यता कि अप्रकाशित रचनाओं की ही चोरी होती है अब बदल चुकी थी।

.
'मौलिक व अप्रकाशित'

Views: 845

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2015 at 4:37pm

आदरणीय मनन जी, आज साहित्य चोरी आम बात हो गयी है, हालाकि यदि रचना पूर्व में प्रकाशित हुई है और चोरी कर पाठ्य पुस्तक में प्रकाशित हुई है तो केस किया जा सकता है और कोई भी होगा केस करेगा ही. बहरहाल एक ज्वलंत मुद्दे को हवा देने में लघुकथा कामयाब हुई है, बहुत बहुत बधाई.

Comment by Manan Kumar singh on June 11, 2015 at 8:49pm
आदरणीय सौरभ जी,आपकी प्रेरणास्पद टिपण्णी हेतु आभार आपका।
Comment by Manan Kumar singh on June 11, 2015 at 8:47pm
निधि जी,आपकी टिपण्णी से लगा कि अपनी बात कह पाया हूँ,आभार।
Comment by Nidhi Agrawal on June 10, 2015 at 11:17am

अच्छी रचना है .. पहले तो लगा ही नहीं की लघुकथा है .. शुरू भी नहीं हुई और ख़तम हो गयी .. 

बढियां सन्देश 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 10, 2015 at 12:10am

आदरणीय मननजी, आपने प्लगियरिजम की स्थिति को जिस गहनता से उठाया है वह आपकी संवेदना का परिचायक है.
हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 5, 2015 at 6:42pm

बहुत अच्छी प्रस्तुति! रचनाएँ चोरी तो होती है, पर अगर बड़े चोरी करें तो मान्यता तो बदलती हाई है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 5, 2015 at 10:25am

आदरणीय मनन भाई , इस फेस बुकी युग मे बहुत सार्थक रचना लगी आपकी , हार्दिक बधाई आपको । 

Comment by Manan Kumar singh on June 5, 2015 at 7:02am
रचना फीचर होने पर समूह को सम्मिलित रूप से हार्दिक आभार!
Comment by Manan Kumar singh on June 4, 2015 at 11:11am
आभार आपका आ.मिश्रा जी
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 3, 2015 at 11:03pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!आ० मनन जी! हार्दिक बधाई! सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service