"अरे मिश्रा जी ,इतना सामान कहाँ ले जा रहे हैं "-पड़ोस के एक सज्जन ने पूछा |
"कुछ नही ,भाई रमेश ,मेरे बेटे का बी.टेक में सिलेक्शन हो गया है न ,उसे हास्टल छोड़ने जा रहा हूँ"-मिश्रा जी ने बड़े गर्व से कहा |
"देखो ,बेटे ,वहां सभी गन्दी चीज़ों से दूर रहना ,अब तक तो हम तेरे साथ थे ,अब तुझे खुद ही सब कुछ करना होगा "-बेटे को समझाते हुए मिश्रा जी ने कहा |
बेटा जो अभी कच्ची मिटटी था ,अपने माँ बाप से कभी दूर नही हुआ आँखों में आंसू भरकर बोला "जी,पिता जी"
इतना कह कर बेटा हास्टल के लिए रवाना हुआ |
4 साल बाद मिश्रा जी अपनी पथराई आँखों से बेटे के उज्जवल भविष्य की कल्पना कर रहे थे ,तभी एक ऑटो आकर रुकी | मिश्रा जी का धयान उस तरफ गया | ऑटो से उनका बेटा तो निकला पर उज्जवल भविष्य की जगह 'जुबान पे गाली और ,हाथों में शराब की बोतल' जरुर थी |
"मौलिक व अप्रकाशित "
Comment
आ.vinaya kumar singh जी ,लघुकथा पर अपनी प्रतिक्रिया देने हेतु आपका आभार |
जैसी संगती , वैसा भविष्य | सुन्दर लघुकथा आदरणीय.
जी ,धन्यवाद आ. गिरिराज भंडारी सर |
आदरनीय महर्षि भाई , विषय का चुनाव बहुत अच्छा लगा , लघु कथा के शिल्प की जानकारी मुझे कम है । फिर भी इतना कह सकता हूँ अंतिम वाक्य थोड़ा और दमदार होना चाहिये ,ऐसा मुझे लगता है । आपको लघु कथा के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।
आ. Dr. Vijai Shanker जी ,,लघुकथा पर सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु आपको बधाई |
परिवेश, माहौल और संगति - कुसंगति जो सिखाती है वह शिक्षा नहीं सिखाती है,
ध्यान देने योग्य लखु - कथा है। बधाई, आदरणीय महिर्षि त्रिपाठी जी, सादर।
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