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"अरे मिश्रा जी ,इतना सामान कहाँ ले जा रहे हैं "-पड़ोस के एक सज्जन ने पूछा |

"कुछ नही ,भाई रमेश ,मेरे बेटे का बी.टेक में सिलेक्शन हो गया है न ,उसे हास्टल  छोड़ने जा रहा  हूँ"-मिश्रा जी ने बड़े गर्व से कहा |

"देखो ,बेटे ,वहां सभी गन्दी चीज़ों से दूर रहना ,अब तक तो हम तेरे साथ थे ,अब तुझे खुद ही सब कुछ करना होगा "-बेटे को समझाते हुए मिश्रा जी ने कहा |

बेटा  जो अभी  कच्ची मिटटी था  ,अपने माँ बाप से कभी दूर नही हुआ आँखों में आंसू भरकर बोला "जी,पिता जी"

इतना कह कर बेटा हास्टल के लिए रवाना हुआ |

 4  साल बाद मिश्रा जी अपनी पथराई आँखों से बेटे के उज्जवल भविष्य की कल्पना कर रहे थे ,तभी एक ऑटो आकर रुकी | मिश्रा जी का धयान उस तरफ गया | ऑटो से उनका बेटा  तो निकला पर उज्जवल भविष्य की जगह  'जुबान पे गाली और ,हाथों में शराब की बोतल' जरुर थी  |

"मौलिक व अप्रकाशित "

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Comment by maharshi tripathi on June 8, 2015 at 9:44pm

आ.vinaya kumar singh जी ,लघुकथा पर अपनी प्रतिक्रिया देने हेतु आपका आभार |

Comment by विनय कुमार on June 8, 2015 at 8:47pm

जैसी संगती , वैसा भविष्य | सुन्दर लघुकथा आदरणीय.

Comment by maharshi tripathi on June 8, 2015 at 7:45pm

जी ,धन्यवाद आ. गिरिराज भंडारी सर |


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Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 6:35pm

आदरनीय महर्षि भाई , विषय का चुनाव बहुत अच्छा लगा , लघु कथा के शिल्प की जानकारी मुझे कम है ।  फिर भी इतना कह  सकता हूँ अंतिम वाक्य थोड़ा और दमदार होना  चाहिये ,ऐसा मुझे लगता है । आपको लघु कथा के लिये हार्दिक बधाइयाँ । 

Comment by maharshi tripathi on June 8, 2015 at 5:52pm

आ. Dr. Vijai Shanker जी ,,लघुकथा पर सकारात्मक प्रतिक्रिया हेतु आपको बधाई |

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2015 at 10:01am

परिवेश, माहौल और संगति - कुसंगति जो सिखाती है वह शिक्षा नहीं सिखाती है,
ध्यान देने योग्य लखु - कथा है। बधाई, आदरणीय महिर्षि त्रिपाठी जी, सादर।

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