Comment
आपने इसमें थोड़ा सुधार किया. लेकिन मेरा सादर आग्रह है कि इस प्रस्तुति को revamp किया जाय.
आदरणीया कान्ताजी, चूँकि, कथा के विन्यास में सामान्य कथ्य न हो कर अत्यम्त क्लिष्ट परिस्थितियों का इंगित है, इसके प्रस्तुतीकरण के समय तनिक विशेष संयत तथा सचेत रहने की आवश्यकता थी. अन्यथा रचना-वाचन के बाद का प्रभाव न केवल तिरोहित हो जाता है बल्कि झुंझलाहट भी होती है. जिसकी चर्चा मैं कर चुका हूँ.
मेरा तो यही मानना है. .. सादर
आदरणीया कान्ताजी, बड़ा ही मनोवैज्ञानिक तथ्य साझा हुआ है. पक्ष को सही रखने का प्रयास भी हुआ है. हार्दिक बधाई देता हूँ. प्रस्तुति साहस के साथ साझा हुई है.
लेकिन कई वाक्य ’मक्खन वाले हाथ’ के कारण झुंझलाहट का कारण बन जाते हैं.
फिर इसे देखें -
उसके मक्खन से हाथों की छुअन से होने वाले सिहरन का आभास देने वाले उस चूड़ी वाले का ..
क्या हुआ इसका मतलब ?
शुभेच्छाएँ.
बढ़िया लघुकथा
हार्दिक बधाई
बहुत बढ़िया तराशी हुई , एवम् स्त्री के एक मनोवेज्ञानिक पक्ष का सुन्दर चित्रण करती इस रचना पर बधाई आ. कांता जी ! सादर
आदरणीया कांता जी , विषय और कथा दोनो बहुत सुन्दर लगे, आपको हार्दिक बधाई , लघु कथा के लिये ।
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