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ग़ज़ल : सवाल एक है लेकिन जवाब कितने हैं

बह्र : १२१२ ११२२ १२१२ २२

हर एक शक्ल पे देखो नकाब कितने हैं

सवाल एक है लेकिन जवाब कितने हैं

 

जले गर आग तो उसको सही दिशा भी मिले

गदर कई हैं मगर इंकिलाब कितने हैं

 

जो मेर्री रात को रोशन करे वही मेरा

जमीं पे यूँ तो रुचे माहताब कितने हैं

 

कुछ एक जुल्फ़ के पीछे कुछ एक आँखों के

तुम्हारे हुस्न से खाना ख़राब कितने हैं

 

किसी के प्यार की कीमत किसी की यारी की

न जाने आज भी बाकी हिसाब कितने हैं

-------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by kanta roy on June 27, 2015 at 1:25pm
वाह !! बेहतरीन गजल लिखी है आपने आदरणीय धर्मेन्द्र जी
Comment by भुवन निस्तेज on June 27, 2015 at 11:15am

आदरणीय धर्मेन्द्र साहब बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई...

जो मेर्री रात को रोशन करे वही मेरा

जमीं पे यूँ तो रुचे माहताब कितने हैं

उद्धृत शेर के मिसरा-ए- सानी में शायद बह्र बैठ न रही हो ऐसा मुझे लगा है . कृपया देख लें..

आपकी ग़ज़लें बहुत आनन्द देती हैं...

कृपया ध्यान दे...

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