2122 2122 2122 212
मुस्कुराकर मौत जितनी पास आयी दोस्तो
ये न भूलो, ज़िन्दगी भी थी बुलाई दोस्तो
बेवफाई जाने कैसे उन दिलों को भा गई
हमने मर मर के वफा जिनको सिखाई दोस्तो
धूप फिर से डर के पीछे हट गई है, पर यहाँ
जुगनुओं की अब भी जारी है लड़ाई दोस्तो
कल की तूफानी हवा में जो दुबक के थे छिपे
आज देते दिख रहे हैं वे सफाई दोस्तो
आईना सीरत हूँ मैं, जब उनपे ज़ाहिर हो गया
यक-ब-यक दिखने लगी मुझमें बुराई दोस्तो
सबके अपने दर्द हैं औ सबके अपने ज़ख़्म भी
कौन किसके घाव की कर दे सिलाई दोस्तो
काश ! ऐसा हो कि जब बस्ती जले, तो ये भी हो
शमअ बोले, आग किसने है लगाई दोस्तो
भूख की शिद्दत ने हमको ज़िन्दगी जीने न दी
हम कहाँ से लायें रंगे पारसाई दोस्तो ---- ( रंगे पारसाई - विरक्ति के रंग )
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मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )
Comment
चलो एक शेर अंतिम हुआ ,
दूसरा शे र देखिये शाय्द अच्छा लगे - -
हाले माजी, हाल, फ़र्दा सब पता जब है उन्हें
मौत की दस्तक उन्हे फिर क्यूँ डराई दोस्तों - --- अब देखिये मित्र ॥
आदरणीय गिरिराज सर बहुत बढ़िया शेर हुआ..... सीरत शब्द तो कमाल .... इस एक शब्द से मिसरे का अर्थ विस्तार शानदार हो गया
मेरी सीरत में छुपा जब आइना, जाहिर हुआ
सबको दिखने लग गई मुझमें बुराई दोस्तो .... वाह वाह
मेरे अभ्यास को मान देने और अनुमोदन के लिए आभार
आदरणीय मिथिलेश भाई , आपकी लगन ने मुझे एक और परिवर्तन के लिये मना लिया है ---
अब -- इस शे र का अंतिम रूप ऐसा सोच रहा हूँ -- कैसा है बताइयेगा
मेरी सीरत में छुपा जब आइना, जाहिर हुआ ।
सबको दिखने लग गई मुझमें बुराई दोस्तो
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हाल , फर्दा वाला शे र पेंडिंग है ॥
मेरी पाकिट में छुपा जब आइना, जाहिर हुआ
सबको दिखने लग गई मुझमें बुराई दोस्तो
आदरणीय गिरिराज सर इस शेर में आइना पॉकेट में छुपा है इसलिए आइना का परंपरा अनुसार प्रतीकात्मक अर्थ ग्रहण नहीं कर पा रहा था.
मेरे चेह्रे में छुपा जब आइना, जाहिर हुआ / मेरे भीतर में छुपा जब आइना, जाहिर हुआ/मेरा चेह्रा जब अचानक आइना जाहिर हुआ
सबको दिखने लग गई मुझमें बुराई दोस्तो
हाले माजी, हाल, फ़र्दा सब पता जब है उन्हें ...... उला का ये मिसरा इतना जबरदस्त बना है कि सानी उसे रब्त नहीं कर रहा. जब उन्हें अतीत, वर्तमान और भविष्य सब का पता है तो फिर ......... यहाँ कुछ बढ़िया मिसरा ए सानी हो जाए तो मज़ा आ जाए. मिसरा-ए-उला बहुत बढ़िया हुआ है, रवानी मुग्ध कर रही है. इसलिए हटाना उचित प्रतीत नहीं हो रहा है .... इसे कुछ इस दिशा में ले जाए कि जब उन्हें अतीत, वर्तमान और भविष्य सब का पता हो जाने का अहं है तो फिर ....... परमपिता की पूजा का आडम्बर क्यों करते है
हाले माजी, हाल, फ़र्दा सब पता जब है उन्हें
फिर खुदा से क्यों निबाहें आशनाई दोस्तों
ये भी उतना सटीक नहीं बैठ रहा फिर भी इस दिशा में कोई दमदार मिसरा-ए-सानी बन जाए तो कमाल का शेर निकल आएगा. यक़ीनन आप बढ़िया सानी ढूंढ लायेंगे.
सादर
आदरणीय मिथिलेश हाई , हौसला अफ्ज़ाई का बेहद शुक्रिया , तफ्सील से प्रतिक्रिया के लिये आपका आभार
1- मतले पर दिया सलाह बहुत बढिया है , स्वीकार कर रहा हूँ ।
2- आईना को आत्म मुग्धता के लिये संकेत नही माना जा ता , आम तौर पर , ये सब को उसका सच दिखाने वाला माना जाता है , या फिर सीधा अरथ कानून , सज़ा सुनाने वाला से लगाना चाहिये । अब फिर से शे र पढ़ के देखियेगा ॥
3- भूत, वर्तमान भविष्य किसी पता है तो , मुँह दिखाई क्यों । शादी के बाद मुँह दिखाई रस्म तब सही सगती थी जब पति पत्नि पहली बार एक दूसरे का चेहरा देखते थे शादी हो जाने के बाद । अब लिभ इन रिलेश के जमाने मे सब एक दूसरे का सब कुछ जनते रहते हैं , बहुत क्लियर न करना पड़े तो अच्छा , इसी लिये मै , भूत, वर्तमान भविष्य लिखा । भाव वही है । और क्लियर करने से अच्छा मै शे र हटा देना समझता हूँ । सोचियेगा , फिर बता दीजियेगा , एक शे र कम जो जाये तो भी गज़ल मे बहुत काफी शे र हैं ॥
आदरणीय महर्षि भाई , आपका बहुत आभार ।
आद्ररणीय महिमा जी , आपका बहुत शुक्रिया ॥
आदरनीय मनोज भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया । मतले मे सीधी सीबात है , उला मे -बात कही गई है कि मौत रोज़ मार रही है , कहकहे लगा रही है ,केवल जही एक सच नहीं है , सानी में मे दूसरा सच बताया गया है कि , ज़िन्दगी भी रोज़ गुन गुना रही है , ये नत भूलें , अर्थात , रोज़ मौत्रं हो रहीं है , तो रोज़ नये बच्चे ज़िन्दगी भी पा रहे हैं ॥
वक़्त ने यूं आग जितनी भी लगाई दोस्तो---/--- वक़्त ने यूं आग रह रह कर लगाई दोस्तो
ये न भूलो, ज़िन्दगी भी गुनगुनाई दोस्तो
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