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पियादे से राजा की फिर मात होगी
सरे सुब्ह लगता है फिर रात होगी
दिशायें जहाँ पर समझ की अलग हैं
वहाँ अब ठिकाने की क्या बात होगी
समझ कर ज़रा आप तस्लीम करिये
वो देते नहीं हक़ , ये ख़ैरात होगी
वही सुब्ह निकली , वही धूप पसरी
नया कुछ नहीं तो , वही रात होगी
यहाँ साजिशों में लगे सारे माहिर
सँभल के, यहाँ पीठ पर घात होगी
बड़ा ख़्वाब जिसका है, दिल भी बड़ा हो
कहीं बाँटनी भी तो ख़ैरात होगी
हरिक जा है फिसलन, गिरे तुम नहीं जो
नये युग की ख़ातिर ये सौगात होगी
वो रूठे हुये हैं , महज़ ख़्वाब है ये
कि उनसे कभी अब मुलाकात होगी
क़याम उनका संभव महल में हुआ है
वो नेता है, साथ उसके , बारात होगी
अभी मंज़िलों की न सोच ऐ मेरे दिल
अभी तो सफर की महज़ बात होगी
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आपका , आदरणीय सौरभ भाई ।
भाईजी मज़ा आ गया.. प्रस्तुति पर विलम्ब से हूँ. खेद है.
शुभकामनाएँ आदरणीय
आदरणीय धर्मेंद्र भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ॥
आदरणीय राणा भाई , गज़ल पर आपकी उपस्थिति से बेहद प्रसन्नता हुई , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
शुरुवात वाला शे र या तो सुधार लूँगा या , निकाल दूँगा , आपका और वीनस अभारी का आभारी हूँ ॥
बहुत खूब आदरणीय गिरिराज जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद कुबूल कीजिए
आदरणीय गिरिराज जी बहुत खूब कमाल के अशार हुए हैं, सारे बेहतरीन, शुरुवात वाली बात पर मैं भी सहमत हूँ वीनस भाई से|
आदरणीय कृश्णा भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।
आदरणीया डा. निरज जी , हौसला अफ्ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
अंतिम शे र के दोनो मिसरों मे अलिफ वस्ल लगा हुआ है , उसे मिला कर ही पढ़ना पड़ेगा , नही तो मिसरे मे लय भंग लगेगा ही ॥
समझ कर ज़रा आप तस्लीम करिये
वो देते नहीं हक़ , ये ख़ैरात होगी लाजवाब सर!
बहुत सुन्दर गज़ल हुयी है आ० हार्दिक बधाई!
बहुत खूब ग़ज़ल है। अंतिम पंक्ति में हल्की सी लय ड्गमगाई है। बधाई सुन्दर गज़ल के लिए।
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