ईन्सान के रूप
है एक रूप पर कितने अलग, ईनसान जगत में होते हैं
कुछ जीने ना दें अपनों को, अपनों के लिये कुछ जीते हैं
बस सोचते किसने कितना दिया, अन्याय किया या न्याय किया
ऐसे ही उलझी बातों में कुछ व्यर्थ लगाते गोते हैं
कुछ संतोषि और तृप्त सदा, कुछ लाभ लोभ में लिप्त सदा
ज्यादा पाने की लालच में जो पास है अपने खोते हैं
अपनी मस्ती में जीते कुछ, नहीं कोई शिकायत दुनिया से
हर पल वो मौज मनाते हैं, खाते पीते और सोते हैं
उपकार किया और भूल गये ऐसे भी फरिश्ते होते हैं
कुछ उपकारों के बोझों को अपने कंधो पर ढोते हैं
कुछ हर कर्मों में बाधक हैं, सत्कर्म उन्हें न सुहाते हैं
कुछ सत्कर्मों से पुण्य कमा, अपने पापों को धोते हैं
जग में कुछ मानव ऐसे भी , जायें जगत से हो के विदा
होजायें अमर नीज कर्मों से सब उनके लिये बस रोते हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय के के द्विवेदी जी इंसान के विभिन्न रूपों पर बढ़िया प्रस्तुति हुई है हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर-
है एक रूप पर कितने अलग, इंसान जगत में होते हैं
कुछ जीने ना दें अपनों को, अपनों के लिये कुछ जीते हैं...... बहुत सुन्दर
किसने कितना लाभ दिया, अन्याय किया या न्याय किया
ऐसी ही बातों में उलझे कुछ बेकार लगाते गोते हैं............. सुन्दर
कुछ संतोषी और तृप्त सदा, कुछ लाभ लोभ में लिप्त सदा
ज्यादा पाने की लालच में जो पास उसे भी खोते हैं.............. बिलकुल सही
अपनी मस्ती में जीते कुछ, ना कोई शिकायत दुनिया से
हर पल वो मौज मनाते हैं, खाते पीते और सोते हैं............. हा हा हा ऐसे भी लोग है
उपकार किया और भूल गये ऐसे भी फरिश्ते होते हैं
कुछ उपकारों के बोझों को अपने कंधो पर ढोते हैं.............. बहुत सटीक
कुछ हर कर्मों में बाधक हैं, सत्कर्म उन्हें न सुहाते हैं
कुछ सत्कर्मों से पुण्य कमा, अपने पापों को धोते हैं..... सही कहा
जग में कुछ मानव ऐसे भी , जो जग से विदाई लेते है.
हो जायें अमर निज कर्मों से सब उनके लिये बस रोते हैं.... बहुत बढ़िया
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