For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"हम फलों से जरा लदे नहीं , हर राह चलता पत्थर फेंकना शुरू कर देता है । सिर्फ इसीलिए क्योंकि हम राह पर अनाथों के तरह फल-फूले हैं ।"
"हाँ भाई ! ठीक कहते हो । यदि  हम भी किसी बाग़ की शोभा होते तो नाज़ों से पलते , ठाठ से रहते । पत्थर की कोई छुअन हम तक नहीं पहुँच पाती ।"
"अजीब विडम्बना है , परवरिश गुलशन में मिले तो कीमत लाखों की , सरे राह क्या जन्मे ,आँख का कांटा हो गए ।"
"हूँ...। गोया कि बाग़ से इतर हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं । "
युवा पेड़ों के वार्तालाप को सुन पास खड़ा बूढ़ा वृक्ष बोल पड़ा - " काश ! इस विडम्बना का शिकार सिर्फ हम वृक्ष ही होते । "

.

मौलिक व अप्रकाशित ।

Views: 460

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shashi bansal goyal on July 24, 2015 at 3:55pm
आद0 मिथिलेश वामनकर जी हृदय से आभारी हूँ सदा रचना पर अपनी स्नेहिल उपस्थिति दर्ज कराने और सराहने हेतु ।
Comment by shashi bansal goyal on July 24, 2015 at 3:50pm
आद0 प्रतिभा पांडे जी हार्दिक आभार एवं धन्यवाद रचना को अपना अमूल्य समय देने हेतु ।
Comment by shashi bansal goyal on July 24, 2015 at 3:48pm
आद0 महर्षि त्रिपाठी जी हार्दिक आभार एवं धन्यवाद रचना को सराहित करने हेतु ।
Comment by shashi bansal goyal on July 24, 2015 at 3:47pm
आद0 ओमप्रकाश जी कथा पर आपकी उपस्थिति और सराहना पाकर अभिभूत हूँ ।सादर धन्यवाद आपका ।
Comment by shashi bansal goyal on July 24, 2015 at 3:44pm
आद0 कांता जी आपकी टिप्पणी ने रचना को पूरी तरह उभार दिया है ।आभारी हूँ कथा के मर्म को समझ इतने सुन्दर तरीके से परिभाषित करने हेतु । एक आग्रह है जो भी कमी रचना मे देखे बेझिझक बताएं ताकि निरन्तर सुधार हेतु प्रेरित रहूँ । सादर ।
Comment by kanta roy on July 24, 2015 at 9:05am
भव्यता की चाह .... नाज और ठाठ से पलने की चाह ही सारी विसंगतियों की जड़ है । हर किसी की पहुँच में होने वाले ने अपने सामान्य होने के कारण जन - जन को उपलब्ध होने का सुख भूल गया । कितने भूखे के मन को तृप्ति देता है चोट सहकर अपना जीवन सार्थक करता है । नाज और ठाठ से रहने वाला .... परकोटे में घिरकर जन मानुष से दूर बस चंद लोगों की पहुँच में .......भरे पेट को ही भरते रहना .... हाय रे ! कितना व्यर्थ उसका जीवन हुआ । इस लघुकथा में फर्क के माध्यम से काफी सारे चिंतन दिये है । स्वंय की हालतों पर दुखी होने का स्वभाव बडा ही सहज है । बधाई आपको आदरणीया शशि जी इस सुंदरतम रचना के लिए ।
Comment by Omprakash Kshatriya on July 23, 2015 at 8:48pm

बहुत ही खूबसूरत लघुकथा आप की 

Comment by maharshi tripathi on July 22, 2015 at 10:15pm

सामाजिक विडंबना को क्या खूब चित्रित किया है अपने ,,,बहुत बहुत बधाई आपको |

Comment by pratibha pande on July 22, 2015 at 8:04pm

बहुत अच्छी  मार्मिक कथा के लिए बधाई ,आ० शशि जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 22, 2015 at 4:55pm

आदरणीया शशि जी, आपने वृक्ष संवाद के माध्यम से एक बड़ी सामाजिक विसंगति और विडंबना को उभारा है. इस संवेदनशील रचना पर हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service