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दफ्तर जाते हुए सेक्टर ६२ नॉएडा से रिक्शा लिया, बैठते ही किसी को सिगरेट फूंकते देखकर धूम्रपान की तलब हुयी तो मैंने भी फौरन सिगरेट सुलगानी शुरू कर दी ! लेकिन हवा तो जैसे मेरे पीछे ही पडी हुयी थी .. एक ..दो ...तीन .. चार, मगर यह क्या ? माचिस की तीलियाँ तो बुझती ही जा रही थीं और मेरी सिगरेट सुलग नहीं पा रही थी ! तब एकदम ख्याल आ गया उस पुरानी माचिस का जो बचपन में घरो में आम हुआ करती थी ! पतली प्लाईवुड कवर वाली और नीले कागज़ वाली .. शायद एक्का माचिस थी ! क्या माचिस हुआ करता थी - एकदम मोटी सी लकड़ी, ऊपर फास्फोरस का बड़ा सा गुम्बद, जो तूफ़ान में भी लपलपा के सुलग जाया करती थी !

आज के ज़माने कोई भी माचिस ले लीजिये फास्फोरस का मसाला तो पता नहीं किसने चूस लिया है ..और आप गिन कर देखिये तीलियाँ ..मुनाफाखोरो ने तादाद तो कम की ही लेकिन साथ में उनको इतना जीर्ण बना दिया है कि उससे कान खुजाने में भी डर लगता है कि कहीं अंदर ही ना रह जाये टूट कर ! और क्या मजाल जो एक दो तीलियों से धूप अगरबत्ती जलने का नाम भी ले जाये ! असली हद तो तब हो जाती है जब माचिस पर तिरंगा छपा होता है ऊपर उसके साथ ही "मेरा भारत महान" भी लिखा हुआ होता है जो आपकी और देखकर मुस्कुराता है और कहता है कि मैं देश हित के लिए जीर्ण हो गया हूँ क्योंकि पेड़ों को कटने से बचाना है ना ! माचिस के कवर पर लोगो भी कई प्रकार के .. एक में देखा बाघ बना है, मगर उसकी भी तीलियाँ जीर्ण है क्योंकि बाघ ने ज्यादा पेड़ नहीं काटने दिए, शायद उसको भी पता है कि जंगल ख़तम हो रहे है तभी तो वह "सेव टाइगर" को प्रोत्साहित कर रहा है ! एक मोमिया माचिस भी होती है, नाज़ुक सी और छोटी सी डिबिया, गोरी - गोरी और नाज़ुक वैक्स से लबरेज़ तीलियाँ, और उस पर लाल मसाला ! यह भी किसी अप्सरा से कम नहीं है, नमी जैसी विषम परिस्थितियाँ इसे बिलकुल बर्दाश्त नहीं हैं ! और यह इतनी सफायी पसंद हैं कि और क्या मजाल जो चिकेन खाने के बाद दांत साफ कर ले इससे ! बहुत याद आती है मिटटी तेल की लालटेन में खोंसी हुई और ढिबरी के साथ रखी हुई अपनी वह पुरानी माचिस ..."

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 12, 2010 at 9:46am
आनंद भाई, अब आगे से भाषा का विशेष ध्यान रखियेगा क्योंकि अब हमारे बीच राणा प्रताप सिंह सरीखे Perfectionist भी मौजूद हैं जो भाषा व व्याकरण की एक भी गलती के लिए ना आपको माफ़ करेंगे ना मुझे ना किसी और को ! में स्वयं अपनी भाषा और व्याकरण के सम्बन्ध में उनसे मशविरा लेता हूँ ! कल मुझे अपना एक नोट एक दो नहीं बल्कि पांच बार बदलना पड़ा था क्योंकि राणा जी की पैनी दृष्टि ने पांच बार उसमें भाषा सम्बन्धी त्रुटियाँ ढूँढी थीं !
Comment by baban pandey on June 12, 2010 at 6:13am
आनंद , आपने बचपन की यादो के बहाने एक साथ कई प्रसंग छेड़ दिया है ...प्रदुषण , जंगल कटाई, और रास्ट्रीय चिन्हों के गलत इस्तेमाल को लेकर ...आप ही उस्ताद हो ...बधाई स्वीकारें ..

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 11, 2010 at 11:28pm
सिगरेट तो एक बहाना था,
वास्तव मे सलाईयो को बताना था,
तिल्लिया दर तिल्लिया बुझती रही,
सिगरेट न जला ना ही जलाना था,
(क्यू भाई Vats, सही कहा ना)
Comment by Anand Vats on June 11, 2010 at 11:06pm
thanku sir .. aagey sey main dhyan rakhunga .. yograj sir .. love you .. this is dedicated to you only
Comment by Admin on June 11, 2010 at 9:11pm
वत्स जी अच्छा हुआ की आपकी सिगरेट वहां नहीं जली , क्योकि यदि वहां जल जाती तो आप यहाँ भी जलाते, यानी लिखते, और ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार मे सिगरेट जलाना मना है, और दूसरा आप सलाइयो के बारे मे लिख नहीं पाते,
सिगरेट के बहाने ही सही आपने बहुत बढ़िया तरीके से सलाइओ के बारे मे जानकारी दे दिया,

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