मैं और मेरी कृत्य के बीच एक रिक्त सदा से
खुद से खुद को जकडे जंजीरों के शून्य हो जैसे
बंधे है एक दूसरे से बाहों में बाहें डाल कर
फिर भी एक बड़ा घेरा जो घिर न रहा हो जैसे
युग्म एकाकार हैं संभावनाएं भी अपरम्पार हैं
लग रहा फिर भी…
Posted on March 2, 2012 at 12:30pm — 8 Comments
पाषाण समाज के सीने पे पडी नन्ही अश्रु की बूँद गाती है अनसुना गीत ,सुनाती है अजन्मी कहानी .|
उसकी गिरेबां को पकडे रोती ,बिलखती , कोसती, झकझोरती , सवाल करती , पता पूछती हैं उस भ्रूण हत्यारे का|
फिर सहसा आंसू पोछती .सोचती कहती की अच्छा हुआ जन्म से पहले मिटा दी गयी पैदा होती तो जाने क्या हश्र होता |…
Posted on March 5, 2011 at 10:21am — 3 Comments
Posted on July 17, 2010 at 2:30pm — 6 Comments
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Comment Wall (6 comments)
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सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…