For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं और मेरी कृत्य के बीच एक रिक्त सदा से 

खुद से खुद को जकडे जंजीरों के शून्य हो जैसे

बंधे है एक दूसरे से बाहों में बाहें डाल कर 
फिर भी एक बड़ा घेरा जो घिर न रहा हो जैसे 

युग्म एकाकार हैं संभावनाएं भी अपरम्पार हैं 
लग रहा फिर भी एकांत भाग्य में बदा हो जैसे

Views: 525

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 3, 2012 at 12:21pm

 सशक्त रचना बधाई स्वीकार करें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 2, 2012 at 11:20pm

मैं और मेरी कृत्य  के स्थान पर  मैं और मेरा कृत्य होगा, आनन्दजी.

शून्य हो  के स्थान पर शून्य हों  होगा. इसी तरह, बंधे है  के स्थान पर बंधे हैं  होना चाहिये न ?

शब्दभाव समीचीन हैं.  प्रयासरत रहें. 

धन्यवाद.

Comment by Abhinav Arun on March 2, 2012 at 9:18pm

युग्म एकाकार हैं संभावनाएं भी अपरम्पार हैं 
लग रहा फिर भी एकांत भाग्य में बदा हो जैसे

shri anand ji एक सशक्त रचना हेतु हार्दिक बधाई !!

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 7:45pm

वत्स जी, बहुत खूब बन पड़ी है ये कविता. बधाई.

Comment by Anand Vats on March 2, 2012 at 1:51pm

शुक्रिया भाई संदीप जी 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 2, 2012 at 1:32pm

शानदार भावना प्रधान रचना पर बधाइयाँ आनंद भाई जी| अति सुन्दर| साभार,

Comment by Anand Vats on March 2, 2012 at 1:31pm

बहुत बहुत शुक्रिया राजेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2012 at 1:13pm

युग्म एकाकार हैं संभावनाएं भी अपरम्पार हैं 
लग रहा फिर भी एकांत भाग्य में बदा हो जैसे

bhaavnaon ka srot aur chitra dono hi kavita ki visheshta hai.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service