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सशक्त रचना बधाई स्वीकार करें
मैं और मेरी कृत्य के स्थान पर मैं और मेरा कृत्य होगा, आनन्दजी.
शून्य हो के स्थान पर शून्य हों होगा. इसी तरह, बंधे है के स्थान पर बंधे हैं होना चाहिये न ?
शब्दभाव समीचीन हैं. प्रयासरत रहें.
धन्यवाद.
युग्म एकाकार हैं संभावनाएं भी अपरम्पार हैं
लग रहा फिर भी एकांत भाग्य में बदा हो जैसे
shri anand ji एक सशक्त रचना हेतु हार्दिक बधाई !!
वत्स जी, बहुत खूब बन पड़ी है ये कविता. बधाई.
शुक्रिया भाई संदीप जी
शानदार भावना प्रधान रचना पर बधाइयाँ आनंद भाई जी| अति सुन्दर| साभार,
बहुत बहुत शुक्रिया राजेश जी
युग्म एकाकार हैं संभावनाएं भी अपरम्पार हैं
लग रहा फिर भी एकांत भाग्य में बदा हो जैसे
bhaavnaon ka srot aur chitra dono hi kavita ki visheshta hai.
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