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"घात"

"" अरे तु चल मेरे साथ दो हाथ जमा उंगा तो सब कबूल देगा कमीना। रात दिन भैया ,भैया करता रहा और हमसे ही इतनी बड़ी गद्दारी। "" मोहन जैसे आगबबूला हुए जा रहा था।
""नहीं ,नहीं एकदम से कैसे कहेगें ,हमारे पास कोई सबूत गवाह भी तो नहीं है। "" रीमा ने रुआंसी आवाज में कहा !

"अरे क्या सबूत क्या गवाह तुझे विश्वास है ना ये उसी ने किया है तो फिर । "" अरे पुलिस के चार डण्डे पडेगें ना तो सब कबूल लेगा। अरे तुम्हारी सारी कमाई ले गया ! ""
" पुलिस नहीं नहीं पुलिस को मत कहो ! यदि पुलिस पकड़ ले गई तो उसकी पत्नी के सामने बच्चों के सामने मोहल्ले में क्या इज्जत रह जायेगी। "" नही नही मैं उसकी बदनामी नहीं देख सकती ! वो भले ही राखी की लाज भूल गया तो क्या मै बहन हूं मैने बांधी थी राखी उसका मान मुझे तो रखना ही होगा ना "" ।
""अरे मगर वो तुम्हारे जेवर सब ले गया और तुम,,,,,,,.। "
" " मेरे जेवर धन दौलत तो आप हो आप सलामत हम फिर से सब पा लेंगें ! है ना ! मोहन आवाक देख रहा था अपनी मजबूत पत्नि को एक शक्ति को।


"शक्त"मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2015 at 3:30am

एक बहन भले जितना सशक्त हो, भाई की बदतमीजियों को अपनी विशेष दृष्टि से देख रही है. लघुकथा के लिए बधाई

Comment by babita choubey shakti on July 31, 2015 at 1:33pm
आ तेजवीर सिंग जी नमन आभार आपने कथा पसन्द की धन्यवाद
Comment by TEJ VEER SINGH on July 31, 2015 at 1:19pm

आदरणीय बबिता जी,बहुत सुंदर लघुकथा,बधाई,औरत का शक्ति रूप सार्थक कर दिया आपने!इसीलिये शायद आपने अपने नाम के साथ शक्ति जोड रखा है!पुनः बधाई!

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