212—212—1222 |
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पास दिल के जो डर नहीं आता |
राहे-हक हमसफर नहीं आता |
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आज बेटा बदल गया कितना |
एक आवाज़ पर नहीं आता |
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मान लेता अगर कहा मेरा |
लौटकर तर-ब-तर नहीं आता |
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बारहा तेरे दर पे आता हूँ |
तू कभी मेरे घर नहीं आता |
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गाँव से शह्र लोग आते हैं |
किन्तु बूढ़ा शजर नहीं आता |
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घूरता हूँ मैं आसमां, जब तक |
मेरे दिल में उतर नहीं आता |
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मेरी औकात जो बताता है |
आइना देख कर नहीं आता |
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हौसला हाथ बस हिलाता है |
पास मेरे मगर नहीं आता |
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रात दिल में उतर गई ऐसे |
दिन निकलता नज़र नहीं आता |
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जिंदगी आज बुझ गई होती |
चाँद गर बाम पर नहीं आता |
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दर्द, गम, वक्त, शर, ज़ियाँ, दुश्मन |
कोई भी पूछकर नहीं आता |
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आँख बादल हुई तो दिल का ये |
मोर क्यों रक्स पर नहीं आता |
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Comment
मान लेता अगर कहा मेरा / लौटकर तर-ब-तर नहीं आता ... इस शेर ने चौंकाया है, मिथिलेश भाई.
आज सायं मैं इलाहाबाद के अग्रगण्य बुज़ुर्ग़ शाइर श्री बुद्धिसेन शर्माजी के निवास पर गया था. देर तक बातें होती रहीं. मुझे कल की ही उनकी लिखी एक ग़ज़ल का प्रथम श्रोता होने का सौभाग्य मिला. उसी दौरान शेर दर शेर बातें चलती रहीं. उन्होंने एकबात बड़े मार्के की कही - क़ामयाब ग़ज़ल के शेर ऐसे होने चाहिये कि १७ साल के युवक सुनें या सत्तर साल के अनुभवी बुज़ुर्ग़, सभी उन शेरों से अपनी-अपनी समझ के अनुसार कुछ न कुछ सार्थक पा लें. जहाँ एक युवा उन शेरों में अपने अनुसार का ’रूमानी संसार’ पाता है तो वहीं बुज़ुर्ग़वार अपनी सोच से ’आध्यात्म-व्यवहार’ पा जाता है. इसकारण, शेर इशारों में बातें करें और लाक्षणिकता ग़ज़ल का आधार हुआ करे.
उपर्युक्त शेर में लाक्षणिकता सम्मोहित करती है. इतनी मुखर, किन्तु उतनी ही तिर्यक !
गाँव से शह्र लोग आते हैं
किन्तु बूढा शज़र नहीं आता .. वो बूढ़ा शजर क्या नहीं कह जाता ? सानी ने बहुत कुछ कह दिया भाई ! बहुत खूब !
सही है, गाँव से बाहर जाने के क्रम में बूढे शजर का मौन स्थिर बने रहना उसकी चीख से अधिक वाचाल है.
मान लेता अगर कहा मेरा |
लौटकर तर-ब-तर नहीं आता........... हा हा हा ....नमन...... इस शेर में जो 'अनकहा' छोड़ा था वही जान था लेकिन अस्पष्ट वाली टीप से .... बस मेरा प्रिय था मगर ..... आजकल अशआर से ज्यादा सम्मोहन नहीं पालता..... आपने इस शेर को पुनः सम्मिलित कर मुझे बहुत मान दिया है. मेरी सोच का गहराई से अनुमोदन हुआ है. |
गाँव से शह्र लोग आते हैं
किन्तु बूढा शज़र नहीं आता / चुप खड़ा वो शजर नहीं आता
जय हो.. :-))
पास दिल के जो डर नहीं आता |
राहे-हक हमसफर नहीं आता |
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आज बेटा बदल गया कितना |
एक आवाज़ पर नहीं आता |
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मान लेता अगर कहा मेरा |
लौटकर तर-ब-तर नहीं आता |
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बारहा तेरे दर पे आता हूँ |
तू कभी मेरे घर नहीं आता |
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गाँव से शह्र लोग आते हैं |
वो गली का शज़र नहीं आता .. .. क्या कहूँ वो शजर नहीं आता / क्यों भला वो शजर नहीं आता / चुप खड़ा वो शजर नहीं आता / या ऐसा कुछ ?.. |
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घूरता हूँ मैं आसमां, जब तक |
मेरे दिल में उतर नहीं आता |
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मेरी औकात जो बताता है |
आइना देख कर नहीं आता |
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हौसला हाथ बस हिलाता है |
पास मेरे मगर नहीं आता |
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रात दिल में उतर गई ऐसे |
दिन निकलता नज़र नहीं आता |
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जिंदगी आज बुझ गई होती |
चाँद गर बाम पर नहीं आता |
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दर्द, गम, वक्त, शर, ज़ियाँ, दुश्मन |
कोई भी पूछकर नहीं आता |
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आँख बादल हुई तो दिल का ये |
मोर क्यों रक्स पर नहीं आता |
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आदरणीय सौरभ सर मुझे लगा कि आपका इशारा इन्ही अशआर पर है...
पास दिल के जो डर नहीं आता |
राहे-हक हमसफर नहीं आता |
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जिंदगी भर बबूल बोये हैं |
आम का यूँ समर नहीं आता |
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आज बेटा बदल गया कितना |
एक आवाज़ पर नहीं आता |
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मान लेता अगर कहा मेरा |
लौटकर तर-ब-तर नहीं आता |
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बारहा तेरे दर पे आता हूँ |
तू कभी मेरे घर नहीं आता |
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गाँव से शह्र लोग आते हैं |
वो गली का शज़र नहीं आता |
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यार है खैर-ख्वाह भी लेकिन |
मेरे हक में नजर नहीं आता |
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घूरता हूँ मैं आसमां, जब तक |
मेरे दिल में उतर नहीं आता |
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मेरी औकात जो बताता है |
आइना देख कर नहीं आता |
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हौसला हाथ बस हिलाता है |
पास मेरे मगर नहीं आता |
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रात दिल में उतर गई ऐसे |
दिन निकलता नज़र नहीं आता |
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बस खयाली लुगत लगाने से |
शायरी में असर नहीं आता |
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जिंदगी आज बुझ गई होती |
चाँद गर बाम पर नहीं आता |
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दर्द, गम, वक्त, शर, ज़ियाँ, दुश्मन |
कोई भी पूछकर नहीं आता |
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रास्ता इश्क का, सफ़र मुश्किल |
एक भी राहबर नहीं आता |
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आँख बादल हुई तो दिल का ये |
मोर क्यों रक्स पर नहीं आता |
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खुद को शायर तो खूब कहता, पर |
शायरी का हुनर नहीं आता |
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आप कैसे पहचानेंगे दोनो तरह के शेरों को ? .. :-))
आदरणीय सौरभ सर, ग़ज़ल की सराहना, मार्गदर्शन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. आपने सही कहा अशआर की संख्या अधिक हुई है और कुछ बस हुए भर है. उन्हें ग़ज़ल से हटाना उचित होगा. मार्गदर्शन के लिए आपका आभार... नमन
आदरणीय कृष्ण भाईजी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
आदरणीय नीरज नीर जी, ग़ज़ल की सराहना, सकारात्मक और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
आदरणीय मिथिलेशजी, इस उम्दा ग़ज़ल केलिए हार्दिक बधाइयाँ. शेरों की संख्या इस बार अधिक हो गयी है क्या ? गिना नहीं है हमने. गज़ल के कुछ शेर तो बहुत अच्छे हुए है. लेकिन कुछ बस हुए भर हैं. जो बस हुए भर हैं, वे बहुत अच्छे शेरों के साथ चहलकदमी करते नज़र आ रहे हैं. सो उन अच्छे शेरों की नक्शेबाज़ी बन नहीं पा रही है.. :-))
हार्दिक शुभकामनाएँ
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