सुरभि की छाँव में आकर हुआ दरपन सहज कायल
तुम्हारा रूप बादल सा इबादत की तरह निर्मल
नहाकर ओस से निकली प्रकृति की नायिका तड़के
उषा की बाँह फैलाये विमोहित रवि हुआ चंचल
न दो व्यवधान अलियों को उन्हें करने निवेदन दो
सुवासित प्रीति का उपवन, समर्पण के खिले शतदल
समूचा सींच डाला मन, बदन, अस्तित्व रिमझिम ने
तुम्हारी याद सावन सी बरसती हर घड़ी, हर पल
नदी की धार पर लिक्खा किसी ने गीत प्राणों का
बहा जब मन तरल होकर, लहर भी हो उठी विव्हल
नज़र की अंजुरियाँ भर-भर के अक्षय कोष लूटा है
बहारों बाँट दूँ हिस्सा, बिछाओ तो जरा आंचल
निगाहों ने लिखे मधुमास, इतराने लगा मौसम
समीरण ने पढ़ी पाती, हवा ने बाँध ली पायल
मौलिक एवं अप्रकाशित
-------- सुलभ अग्निहोत्री
Comment
बहुत-बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी। आप लोगों का प्रोत्साहन ही सामथ्र्य देता है।
आदरनीय सुलभ भाई , बेमिसाल गज़ल कही है , सभी अशार बाकमाल कहे हैं , हार्दि बधाइयाँ आपको ।
आदरणीय -- ऊषा या उषा ? ।
आदरणीय सुलभ अग्निहोत्री जी आपने बह्र-ए-हजज़ में शानदार ग़ज़ल कही है. मतला बेहतरीन हुआ है. इस ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है. ये अशआर बहुत पसंद आये, इन पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं-
समूचा सींच डाला मन, बदन, अस्तित्व रिमझिम ने
तुम्हारी याद सावन सी बरसती हर घड़ी, हर पल................. बहुत सुन्दर
नदी की धार पर लिक्खा किसी ने गीत प्राणों का
बहा जब मन तरल होकर, लहर भी हो उठी विव्हल.............. वाह वाह
नज़र की अंजुरियाँ भर-भर के अक्षय कोष लूटा है
बहारों बाँट दूँ हिस्सा, बिछाओ तो जरा आंचल............... बहुत खूब ... उम्दा शेर
इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online