ईमानदारी जरा चोटिल ही हुई थी कि मौके का फायदा उठा कुछ लोगों ने उसे निष्प्राण घोषित कर तुरत - फुरत में ठठरी पर कसने लगे । उन्हे डर था उसके वापस जिंदा हो गतिमान होने का ।
जिन चार कंधों पर उसकी अर्थीं उठाई जा रही थी उनमें सबसे आगे देश के कर्णधार थे उसके पीछे भ्रष्टाचार , देश के सफलतम व्यवसाई और शेयर दलाल थे ।
सबकी आँखें चमक रही थी । सबके मन में लड्डू फूट रहे थे कि पीछे रोती हुई जनता अचानक खुशी के मारे तालियाँ बजाने लगीं ।
तालियों की शोर पर काँधे देने वालों ने चौंक कर देखा तो ईमानदारी सारी रस्सी तोड़कर उठ बैठी थी ।
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मौलिक और अप्रकाशित
Comment
लघुकथा अच्छी लगी, आदरणीया कान्ताजी. हार्दिक बधाई.
जिन चार कंधों पर उसकी अर्थीं उठाई जा रही थी उनमें सबसे आगे नेता थे उसके पीछे भ्रष्टाचार , देश के सफलतम व्यवसाई और शेयर दलाल थे ।
उपर्युक्त वाक्य को और व्यवस्थित एवं तार्किक करें, आदरणीय़ा.
नेता के पीछे काँधा देते ’भ्रष्टाचार’ का क्या व्यक्तिकरण (personification) हो गया था ? भ्रष्ट विशेषण के साथ कोई संज्ञा होगी न ? फिर देश के सफलतम व्यवसायी और शेयर दलाल सभी जुट गये थे काँधा देने में ? समूहवाचक संज्ञा भी एकवचन में व्यवहृत होती है यदि उसे जातिवचक बना कर प्रयुक्त किया जाये.
लघुकथा के इंगित वस्तुतः प्रहारक हैं.
शुभेच्छाएँ
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