गजल
बहर - 212 1212 1212 1212
काफिया - अर, रदीफ - मियाँ
पत्थरों के जंगलों से भर गए शहर मियाँ
दादी-नानी सँग गए वो सांस लेते घर मियाँ
कल को एक बार आसमान से वो झांक लें !
किस तरह मिला सकोगे पुरखों से नजर मियाँ ?
मत उखड़ ! यही लिहाज कर लिया, बहुत किया
जो नजर बचा के दूर से गए गुजर मियाँ
आग का उफान कौन सा ये इन्कलाब है
लाए किसके वास्ते दहकती दोपहर मियाँ
हमको क्या पता हमारा तो कभी दखल न था
तुम को हो तो हो विरासतों की कुछ खबर मियाँ
वक्त ले गया बहा के मूर्तियों की धूल तक
हम भी उनको भूल पूजते हैं खण्डहर मियाँ
चैन पा सके बिंधी हुयी ये रूह चार पल
गुनगुनाये गीत हमने रात-रात भर मियाँ
मौलिक एवं अप्रकाशित
-------- सुलभ अग्निहोत्री
Comment
आदरणीय सुलभ जी बढ़िया ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं
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