"क्या कर रहा है i,बार बार साँस तोड़ कर सुर गड़बड़ा रहा है ..ध्यान कहाँ है तेरा ?"
"जी ,वो रात से घरवाली की हालत बहुत खराब है ,..यहाँ से फारिग हो जाऊं ,और पैसे मिल जाएँ तो अस्पताल ले जाऊं "
"मिल जाएंगे पैसे , करोड़ों की इस शादी का इंतजाम लिया है मैंने ,तू अच्छी शहनाई बजाता है खासकर बिदाई की ,इसलिए तुझे पूरे दो हज़ार दे रहा हूँ एक घंटे के ,बस 10-15 मिनट में हो जाएगी बिदाई, चले जाना "I
उसने शहनाई पर होंठ रखे ही थे कि कंधे पर हाथ महसूस किया ,छोटा भाई था .. बदहवास, चेहरा आँसूओं से तर
"दद्दा ..वो भौजाई .."
दुल्हन फूलों से लदी गाड़ी की तरफ बढ़ रही थी
डबडबाई आँखों को उसने जोर से बंद किया ,पूरी ताकत से सांस अन्दर ली और विदाई की धुन छेड़ दी...
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
प्रतिभा जी
जरा सी बात आपके शिल्प से निखर कर सुन्दर लघु कथा बनी . बधाई हो .
कथा की सराहना के लिए आपका आभार आ० अन्नपूर्णा जी
आ० जवाहरलाल जी ,आपने कथा पर आकर मान बढाया ,आपका ह्रदय से आभार
आ० लक्ष्मण भाई ,कथा की सराहना के लिए आपका आभार
कथा की प्रशंसा के लिए आपका तहे दिल आभार आ० शशि जी
अति मार्मिक सुन्दर लघु कथा के लिए बधाई।
कितने निर्धन "भाई" "बहन" "माता-पिता" इसी दशा से गुज़र रहे हैं, और कितनी बार उनकी ज़रूरत जानते हुए भी कोई उनकी सहायता के लिए आगे नहीं बढ़ता। ऐसी ही हृदयविदारक समस्या पर मैंने यहाँ ओ बी ओ पर एक रचना पोस्ट की थी " छाँह में छिपना चाहता हूँ", जिसमें... एक पिता के पास बच्चे के कफ़न के लिए सफ़ेद चादर के लिए पैसे नहीं थे, और इसलिए वह सड़क पर खड़ा केले बेच रहा था ... यह असली घटना है हरदोई के पास एक ग्राम में।
अच्छी लघु कथा के लिए पुन: बधाई।
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