Comment
आदरणीय सौरभ जी , आपका ये मार्गदर्शन सहित त्रृटियों को इंगित करना मेरे लिये इस मंच पर अनुपम सौगात हुआ है । आपसे ये मेरा विशेष निवेदन है कि मुझपर सदा ये अनुग्रह बनाये ऱखियेगा । मेरा , लेखन में अभी शैशव काल है और मैं समझने के लये अति उत्सुक भी हूँ । कभी -कभी मैं वक्त लेती हूँ समझने में और अनजाने में गलती का दोहराव भी कर बैठती हूँ अक्सर , इसलिये सदा इसी तरह मुझे मेरी गलतियों पर सचेत कर मुझ पर कृपा बनाये रखियेगा । सादर
वस्तुतः यह रचना ही होती है जो कुछ कहने के लिए प्रेरित करती है. या फिर उस रचना का रचनाकार.
आज इस मंच पर कई सदस्य हैं जो सापेक्षतः नये हैं.
आदरणीया कान्ताजी, यह सबको मालूम है कि रचनाओं पर नीर-क्षीर चर्चा यदि न हो तो फिर रचनाकर्म कमज़ोर रह जाता है. लेकिन नीर-क्षीर चर्चा किन्हीं की रचना पर हो जाये जो इनका आदी नहीं है तो.. आदरणीया, हमारा अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा है. आपने जब-तब ऐसा महसूस किया होगा कि कुछ सदस्य ऐसी प्रतिक्रियाओं को सहज रूप में नही लेते.
आपकी संलग्नता, सीखने की अदम्य इच्छा तथा सुझावों के बाद रचनाओं के सुधरे स्वरूप को लेकर आपका अभ्यास हमसभी को उत्साहित तो करता ही है, आशान्वित भी करता है.
आपके ही माध्यम से वे सदस्य भी लाभान्वित हो जायेंगे, जिनकी रचनाओं में ऐसी कुछ बातें होंगीं जैसी आपकी रचना में मिली हैं.
आपको मेरा निवेदन काम का लगा, मैं अनुगृहित हूँ.
हमसब समवेत सीखते हैं
सादर
एक सामान्य सी लघुकथा ने आपको विवश किया इतनी सुन्दर विवेचना के लिए मैं तो कृतार्थ हो गयी इस अनुपम समीक्षा को पाकर। आपने लघुकथा के तत्थों के साथ व्याकरणीया दृष्टिकोण से अवगत कराया और इसके रेशे -रेशे की समीक्षा की ,इतना गूढ़ पठन के योग्य रचना को समझा ,इसके लिए शत -शत नमन आपको।
// जब वाक्य में दो संज्ञाओं के सर्वनाम प्रयुक्त होते हों तो लेखक के तौर पर हमें अधिक सचेत रहने की आवश्यकता होती है. अन्यथा उलझाव हो जाता है. ’करीब जाकर पूछने वाला’ अलग है, ’दाहिनी तरफ इशारा’ करने वाला अल्ग है. जिसकी ’नज़र वहाँ घूमी’ भी इनमें से कोई एक है. क्या हो रहा है इस वाक्य में ? व्याकरण के अनुसार इसे वाक्य दोषपूर्ण माने जाते हैं. कारण कि, पाठक प्रस्तुति के कथ्य और तथ्य पर दिमाग़ लगाये या वाक्य-विन्यास पर ?//
-----यहाँ लेखन में एक नई दृष्टि मिली हमें की हम इन पहलुओं को अनदेखा नहीं कर सकते हैं लेखन में।
//लड़की अब उससे भी सशंकित हो उठी थी, लेकिन उसकी अधेड़ावस्था के कारण विश्वास ....या अविश्वास ..... शायद ! //-----
मैंने यहां कोशिश की थी की लड़की के मन की दुविधा को रोपित करने की ,उसकी मजबूरी ने उससे विवश किया उस पुरुष (बेवड़े) पर भरोसा करने के लिए।
//’कुप्प’ शब्द वस्तुतः ’घुप्प’ है. ’कुप्प’ ’कुआँ’ का तत्सम स्वरूप होता है//----
हिन्दी साहित्य में शब्द - शब्द का अर्थ -अनर्थ ये जाना मैंने आज आपके द्वारा की गई इस समीक्षा से ।
आपके इस सार्थक शिक्षात्मक टिप्पणी की वजह से ऐसा लगा जैसे मन-मस्तिष्क पर पडे एक ताले में कोई सही चाभी लग गई है । सृजन-काल में इन बातों पर बेहद सतर्क रहने कि जरूरत आन पडी है ।
पूज्य श्री बिलकुल सही कहें है परसों अपने लघुकथा और कहानी संदर्भ में कि हम सिर्फ अभी लिखना समझे हैं कहना नहीं । मुझे तो ऐसा भान हो रहा है कि लिखना सीखना भी जैसे अभी बाकी ही है हमारा ।
इस विशेष अनुग्रह के लिये सदा आभारी रहूंगी आपका आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ।
गुरूजनों समेत सादर नमन मंच को ।
कुछ प्रस्तुतियों के आयाम तनिक विशिष्ट हुआ करते हैं. यह शीर्षक के मात्र कथात्मक बहाव के कारण नहीं होता, बल्कि इस बात पर भी निर्भर करता है कि उनके साथ रचनाकार बर्ताव कैसा कर रहा है. यही बताता है कि रचनाकार वस्तुतः चाहता क्या है !
यह लघुकथा अपने सामान्य बहाव में ही बढ़ती है. लेकिन प्रहारक-पंक्ति के रूप में उद्धृत वाक्य इसका टर्निंग-प्वाइण्ट है. पाठक को आवश्यक पंच मिल जाता है. लघुकथा निस्संतान दंपति की मनोदशा को जिस गहराई से प्रस्तुत करती है वह इसके रचनाकार के तौर पर आदरणीया कान्ताजी की सोच और उसके आयाम के प्रति आश्वस्त करता हुआ है.
इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ और अशेष शुभकामनाएँ, आदरणीया कान्ताजी.
अब लघुकथा के व्यावहारिक पक्ष को लिया जाये. तो अंत, जो कि इस लघुकथा की उद्येश्य और बल है, आशा से अधिक आशावादी है, कई तरह के प्रश्नों को आकर्षित करता हुआ-सा ! लाजिमी भी है. क्योंकि कोई स्त्री सड़क पर से लायी गयी युवती को सहज ही पुत्रीसम स्वीकार नहीं कर लेगी. चाहे वो आदती ’बेवड़े’ की ही पत्नी क्यों न हो. पति कितना ही इम्पोजिंग क्यों न हो.
लेकिन लघुकथा विधा में ऐसी नाटकीयता सदा से स्वीकार्य रही है. निर्भर करता है कि नाटकीयता का निर्वहन कैसे हुआ है. ध्यातव्य है, कथ्य में नाटकीयता का सार्थक निर्वहन ही एक रचनाकार को इस लघुकथा विधा में स्थापित करता है.
अब बातें व्याकरण की दृष्टि से --
//करीब जाकर कुछ पूछने ही वाला था कि उसने अंगुली से अपने दाहिने तरफ इशारा किया । उसकी नजर वहां घूमी //
जब वाक्य में दो संज्ञाओं के सर्वनाम प्रयुक्त होते हों तो लेखक के तौर पर हमें अधिक सचेत रहने की आवश्यकता होती है. अन्यथा उलझाव हो जाता है. ’करीब जाकर पूछने वाला’ अलग है, ’दाहिनी तरफ इशारा’ करने वाला अल्ग है. जिसकी ’नज़र वहाँ घूमी’ भी इनमें से कोई एक है. क्या हो रहा है इस वाक्य में ? व्याकरण के अनुसाराइसे वाक्य दोषपूर्ण माने जाते हैं. कारण कि, पाठक प्रस्तुति के कथ्य और तथ्य पर दिमाग़ लगाये या वाक्य-विन्यास पर ?
दूसरे, सही वाक्यांश होगा - उसने अँगुली से अपने दाहिनी तरफ इशारा किया. ’तरफ’ स्त्रीलिंग की तरह इस्तमाल होता है.
//लड़की अब उससे भी सशंकित हो उठी थी, लेकिन उसकी अधेड़ावस्था के कारण विश्वास ....या अविश्वास ..... शायद ! //
प्रस्तुत वाक्य जब यह बता देता है कि उस पुरुष (बेवड़े) की अधेड़ावस्था से वह लड़की आश्वस्त-सी हो जाती है तो फिर ’या अविश्वास’ या मन में कोई भ्रम बनना उचित नहीं लगा. ऊहापोह को और बेहतर वाक्य मिल सकता था.
//"अब आखिरी बार पुछता हूँ , मेरे घर चलोगी हमेशा के लिए ? "//
पुछता हूँ या पूछता हूँ ? अवश्य ही, ’पूछता हूँ’.
//मोतियों सी लड़ी गालों पर ढुलक आई । गहन कुप्प अंधेरे से घबराई हुई थी //
इसी कथा में पहले लाइट-पोस्ट का ज़िक़्र हुआ है जिससे सहारा लिये हुए वह लड़की बतायी गयी है. फिर ये ’कुप्प’ वो भी ’गहन’ ’अँधेरा’ अचानक कहाँ से हो गया ? शायद बिजली चली गयी होगी. है न ?
दूसरे, ’कुप्प’ शब्द वस्तुतः ’घुप्प’ है. ’कुप्प’ ’कुआँ’ का तत्सम स्वरूप होता है.
शुभेच्छाएँ
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